Thu. Sep 19th, 2024

चर्च और मदरसों को धार्मिक दान उपयोग करने की स्वतंत्रता तो हिंदू मंदिरों को क्यों नहीं : स्वामी दिव्यज्ञान

विभिन्न धर्मों के धार्मिक संस्थाओं के आर्थिक-स्त्रोतों पर समान आचार-संहिता समय की मांग ताकी हिन्दू धर्म बच सके – स्वामी दिव्यज्ञान
रामगढ़। गोला के रायपुरा एवं उरांव जारा टोला में रविवार को धार्मिक संस्थाओं के आर्थिक-स्त्रोतों पर समान आचार-संहिता समय की मांग को लेकर बैठक किया गया। मौके पर स्वामी दिव्यज्ञान ने बताया की कोरोना-काल में जैसे वक़्फ़ बोर्ड के लोगों को, इमामों को सहायता-राशि, मानदेय या भत्ता सरकार की ओर से मिल रही है वैसी ही व्यवस्था मंदिर के पुजारियों, पुरोहितों के लिए भी की जानी चाहिए। लॉकडौन में अधिकांश मंदिर आदि बंद कर दिए गए हैं। सार्वजनिक पूजा-पाठ पर पाबंदी है। अनलॉक के बाद भी स्थिति कमोबेश वैसी ही है जिससे इनके आय के स्रोत पूर्णतः बन्द हो गए हैं और वे लोग दाने -दाने के  मोहताज हो गए है, क्योंकि यहीं उनके जीवन-यापन का मुख्य आधार है। अतः उन्हें भी वही सुविधा मिले।
सरना कोड पर स्वामी जी ने कहा कि सरकार को गम्भीरता से विचार करना चाहिए। भारत में अनेक आदिवासी हैं। अतः आवश्यकता इस बात की है कि सभी परम्परागत  धर्मावलंबियों के लिए एक सामान्य “आदिवासी कोड” मिले ।धार्मिक संस्थाओं के आय-स्त्रोतों पर सरकारी नीति में एकरूपता समय की मांग है। जैसे चर्च स्वतंत्र है अपने  डोनेशन (दान) को लेकर, वो प्राप्त दान से विद्यालय और अस्पताल बनवा सकते हैं। वक्फ बोर्ड स्वतंत्र है अपने सदस्यों के साथ वक्फ(दान) के धन का सदुपयोग करने के लिए, मज़ार स्वतंत्र है चढ़ावे के साथ तो वो उसका  उपयोग मदरसा या इस्लाम को  बढ़ाने मे उपयोग करता है। इसी तरह हिन्दुओं के दान के सबसे बड़े स्रोत हिन्दू मंदिर हैं जिसपर  राज्य सरकारों का कब्जा है। कब्ज़ा होने के बाद उससे हुए आय का प्रयोग हिन्दू उत्थान, संस्कृति, सभ्यता को बढ़ावा देने मे में नहीं होता है। उन्होंने कहा कि अन्य धर्मों की तरह हिंदुओं को भी इसी अनुरूप  सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। संविधान धर्म निरपेक्ष है,  सरकार धर्मनिरपेक्ष है,  तो एक धर्मनिरपेक्ष सरकार किसी विशेष धर्म को बढ़ावा नहीं दे सकती है। ऐसे में हमारे पास अपने धर्म को बढ़ावा देने की संभावना नहीं के बराबर हो जाती है। अभी हाल मे जो लॉकडॉन हुआ उसमे इस्लामिक धर्माचार्य और ईसाई धर्माचर्यों को बहुत कम कठिनाई हुईं क्योंकि या तो वे अपने धार्मिक दान के उपयोग को स्वतंत्र थे या सरकारी वेतन मिल रहा था। वहीं हिन्दू धर्माचार्य को न ही वेतन मिला ना ही चढ़ावा पर अधिकार मिला क्योंकि वो सरकारी नियंत्रण में है। दिल्ली वक्फ बोर्ड ने अपने जमशेदपुर के धर्मालम्बी को 25 लाख रुपए दिए जो उनका अधिकार क्षेत्र में था और वक्फ या दान से प्राप्त हुआ था । लेकिन  हम हिन्दू  अपने मंदिरों के चढ़ावे  या दान से स्वयं अपने धर्मालम्बी की कोई सहायता नहीं कर पाए क्योंकि वो एक धर्मनिरपेक्ष सरकार के हांथो में था। ये विचारणीय है कि आवश्कता होने पर चर्च वक्फ बोर्ड मज़ार की कमिटी  खड़ा होगा अपने आर्थिक संसाधनों के साथ अपने धर्मालम्बियों के लिए  वहीं हम हिन्दू  धर्माचार्य के हाथ बंधे रहते हैं। क़ानून तो गोहत्या निषेध के लिए तो झारखण्ड में बहुत मजबूत बने हैं, लेकिन 15 साल होने के बाद भी क्या किसी को सज़ा नहीं हो पाई। धर्मांतरण के लिए भी पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सेवा-काल में  2017 में कड़े क़ानून बनाये।कोरोना-संकट के प्रारंभिक चरण को कुशलतापूर्वक नियंत्रित करने के लिए स्वामी दिव्यज्ञान ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की प्रशंसा की लेकिन वर्तमान समय में सरकार इसके प्रति थोड़ी शिथिल हो गई है जो झारखंड के लिए शुभ संकेत नहीं है।
Website | + posts

राष्ट्र समर्पण एक राष्ट्र हित में समर्पित पत्रकार समूह के द्वारा तैयार किया गया ऑनलाइन न्यूज़ एवं व्यूज पोर्टल है । हमारा प्रयास अपने पाठकों तक हर प्रकार की ख़बरें निष्पक्ष रुप से पहुँचाना है और यह हमारा दायित्व एवं कर्तव्य भी है ।

By Rashtra Samarpan

राष्ट्र समर्पण एक राष्ट्र हित में समर्पित पत्रकार समूह के द्वारा तैयार किया गया ऑनलाइन न्यूज़ एवं व्यूज पोर्टल है । हमारा प्रयास अपने पाठकों तक हर प्रकार की ख़बरें निष्पक्ष रुप से पहुँचाना है और यह हमारा दायित्व एवं कर्तव्य भी है ।

Related Post

error: Content is protected !!