‘भारत रत्न’ और भारत के दूसरे प्रधानमंत्री स्व. श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने की उस समय थे –
‘’जब स्वतंत्रता और अखंडता खतरे में हो, तो पूरी शक्ति से उस चुनौती का मुकाबला करना ही एकमात्र कर्त्तव्य होता है। हमें एक साथ मिलकर किसी भी प्रकार के अपेक्षित बलिदान के लिए दृढ़तापूर्वक तत्पर रहना है।‘’
उनका कहना था कि ‘’हमारा रास्ता सीधा और स्पष्ट है। अपने देश में सबके लिए स्वतंत्रता और संपन्नता के साथ समाजवादी लोकतंत्र की स्थापना और अन्य सभी देशों के साथ विश्व शांति और मित्रता का संबंध रखना।‘’
भाषा के विवाद खड़े होने पर शास्त्री जी ने कहा, “पूरे देश के लिए एक संपर्क भाषा का होना आवश्यक है, अन्यथा इसका तात्पर्य यह होगा कि भाषा के आधार पर देश का विभाजन हो जाएगा। एक प्रकार से एकता छिन्न-भिन्न हो जाएगी.. भाषा एक ऐसा सशक्त बल है, एक ऐसा कारक है जो हमें और हमारे देश को एकजुट करता है। यह क्षमता हिन्दी में है।“
भारतीय स्वाभिमान के कुशल प्रहरी श्री शास्त्री जी की आज जयंती है। उन्होंने अपना पूरा जीवन जवानों और किसानों के उद्धार में लगा दिया। देश के गौरव को बढ़ाने के लिये वे सतत प्रयासरत रहे। देश के लिए अपना जीवन न्योछावर करने वाले शास्त्री जी का जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय के एक साधारण परिवार में हुआ था।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद उज्वेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में 11 जनवरी, 1966 की रात को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था।
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