लेख: रितेश कश्यप
भारत सरकार द्वारा मोटर व्हीकल अधिनियम बड़ी सख्ती से लागू कर दिया गया। सरकार बड़ी ही असंवेदनशील है। गरीबों की सुनना ही नहीं चाहती । एक तो वैसे ही कोई काम धाम नहीं है लोगों के पास।लोगों की हालत ये है कि लोग बेरोजगारी और मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं ।
एक दिन की बात है, कहीं से दस पन्द्रह हजार रुपए जुगाड़ हुए थे, बस फिर क्या था। जहां काम कर रहा था वहीं के सेठ जी को बोला कि मालिक अगर आपकी कोई गाड़ी हो तो मुझे सेकंड हैंड में दे दीजिए, बड़ी दूर से आना पड़ता है इसी वजह से अक्सर देरी भी हो जाती है।
मालिक ने एहसान और रहम दिखाकर अपनी गाड़ी ₹16000 में दे दी। मैं भी शान से रोज आना जाना करने लगा।
समय तो जैसे तैसे गुजर ही रहा था । एक दिन अपने घर से काम पर निकला तो एक और नया झटका लग गया। रास्ते में यातायात प्रभारी अपने चार पांच सिपाहियों के साथ गाड़ी की जांच परख कर रहे थे। पता चला कि सरकार ने गाड़ियों को लेकर एक नया कानून लाया है। अब मेरे पास ना तो लाइसेंस था , ना ही हेलमेट और ना ही गाड़ी के पूरे कागजात। बस फिर क्या था चालान काटने की बारी आई तो पता चला कि ₹14000 चालान के लगने वाले हैं। काफी मिन्नतों के बाद यातायात प्रभारी को दया आयी । दया करके उन्होंने कहा कि ₹10000 से एक रुपया कम नही होगी। एक पल में लगा कि पूरी दुनिया ही उजड़ गई वह कौन सा नक्षत्र था कि मैंने गाड़ी ली । मैं उस समय और अपने आप को कोस रहा था और मन ही मन अपने आप को गाली दे रहा था। साईकल से आने जाने में मुझे थोड़ी सी मेहनत ही तो लगती थी। समय और मेहनत बचाने के चक्कर में आज इतनी बड़ी मुसीबत मोल ले ली।
खैर, जैसे तैसे मैंने चालान भरा । उसके बाद एक हेलमेट लिया और गाड़ी के पूरे कागजात बनवाए। मालिक ने भी उधार ही सही मगर पैसों में थोड़ी बहुत मदद कर दी थी।
कुछ दिन बीता, चेकिंग जारी था और मैं शान से आना-जाना करता था क्योंकि मेरे पास सारे कागजात थे।
मेरा एक ही बेटा जो बड़ा हो गया था इसलिए उसका भी लाइसेंस बनवा दिया था क्योंकि वो भी मेरी तरह किसी मुसीबत में ना फंस जाए। भाई गरीब आदमी अपने आगे और पीछे दोनों के बारे में सोचता है इसलिए मैंने भी सोचा।
एक दिन की बात है वह किसी काम से बाजार गया। काफी समय बीतने के बाद वह नहीं आया तो हम लोग काफी परेशान हो गए। मैं और मेरी पत्नी उसके मोबाइल पर फोन लगाने की प्रयास कर रहे थे मगर कई बार पूरी घंटी बजकर फोन कट जा रहा था। धीरे-धीरे हम लोगों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी तभी अचानक मेरे बेटे के फोन से एक फोन की घंटी बजी। दूसरी ओर से जो आवाज आई वो मेरे बेटे की नहीं थी। उस आदमी ने बताया कि वह सदर अस्पताल का कर्मचारी है। उस कर्मचारी ने बताया कि हमारे बेटे का एक्सीडेंट हो गया है। एक्सीडेंट का नाम सुनते ही लगा कि मानो काटो तो खून नहीं। किसी तरह हम लोगों ने अपना होश संभालते हुए पूछा कि बेटे की स्थिति कैसी है। कर्मचारी ने बताया कि बेटे की हालत अभी ठीक है। ये सुन कर हम लोगों के जान में जान आई और हम लोग जल्दी से अस्पताल जाकर अपने बेटे से मिले। अस्पताल में बेटे ने बताया कि एक्सीडेंट एक टेंपो वाले से हुआ था उसने बताया कि अगर हेलमेट ना होता तो शायद आज वह इस दुनिया में नहीं होता। हेलमेट पहनने की वजह से उसकी जान बच गई।
ये सुन कर मैने सबसे पहले भगवान को धन्यवाद दिया। तभी मुझे वो दिन याद आ गए जब बड़ी मुश्किल से चालान का पैसा जुगाड़ कर यातायात प्रभारी को दिया था। कितनी गालियां मन ही मन दे रहा था उसे। आज भगवान के साथ साथ उस यातायात प्रभारी को बहुत सारे धन्यवाद दे रहा था और सोच रहा था कि अगर उस दिन वह ट्रैफिक पुलिस ने चालान नहीं काटा होता तो शायद आज मेरे साथ मेरा बेटा नही होता।
आज भी जब भी कहीं चालान काटा जाता है तो लोग ऐसे ही गालियां देते रहते हैं । उन्हें नहीं पता होता कि यह सब नियम-कायदे उन्हीं के लिए और उनके परिवार के भलाई के लिए होते हैं। दुर्घटना में अक्सर हेलमेट ना पहनने के वजह से कई मौत हो जाती है।
आज कई जवान बेटों के मां-बाप इस बात से तो जरूर खुश होंगे कि जब उसका बेटा घर से बाहर निकलेगा तो अपने सभी सुरक्षा कवच लेकर ही निकलेगा।
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