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वक्फ संशोधन बिल लोकसभा में पेश, विस्तार से जानिए संशोधन का प्रारूप

वक्फ बोर्ड बिल का परिचय

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024, जो 2 अप्रैल, 2025 को संसद में चर्चा के लिए प्रस्तुत किया गया है, वक्फ अधिनियम, 1995 में बड़े बदलाव लाने का प्रयास करता है। यह इस्लामिक धार्मिक और परोपकारी संपत्तियों के प्रबंधन को सुधारने का दावा करता है, लेकिन इसके कई पहलू विवादास्पद रहे हैं।

मुख्य संशोधन

बिल में 14 प्रमुख संशोधन शामिल हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

राज्य और केंद्रीय वक्फ बोर्डों में कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्यों और महिलाओं को अनिवार्य रूप से शामिल करना।

वक्फ संपत्तियों का डिजिटलीकरण और छह महीने के भीतर केंद्रीय पोर्टल पर पंजीकरण, जिसे पारदर्शिता बढ़ाने के लिए प्रस्तावित किया गया है।

‘वक्फ बाय यूजर’ क्लॉज को हटाना, जिससे पुरानी वक्फ संपत्तियों की मान्यता पर सवाल उठ रहे हैं।

वक्फ ट्रिब्यूनल की शक्तियों में वृद्धि और जिला मजिस्ट्रेट की भूमिका बढ़ाना, जिसे हस्तक्षेप के रूप में देखा गया है।

विवाद और राजनीतिक रुख

यह बिल विवादास्पद है क्योंकि विपक्ष, विशेष रूप से कांग्रेस और AIMIM, इसे मुस्लिम धार्मिक स्वायत्तता पर हमला मानते हैं। असदुद्दीन ओवैसी ने इसे ‘वक्फ बारबाद बिल’ कहा है, जबकि सरकार का कहना है कि यह दक्षता और पारदर्शिता लाएगा। एनडीए, जिसमें बीजेपी और सहयोगी जैसे जेडीयू शामिल हैं, बिल का समर्थन कर रहे हैं, और आज, 2 अप्रैल, 2025 को, इसे लोकसभा में पास होने की संभावना है, क्योंकि एनडीए के पास पर्याप्त बहुमत है।

अप्रत्याशित विवरण

एक अप्रत्याशित पहलू यह है कि बिल में मुस्लिम ओबीसी समुदाय के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना शामिल है, जो समावेशिता का प्रयास हो सकता है, लेकिन इसे भी विवादास्पद माना गया है।

विस्तृत सर्वेक्षण नोट

इस खंड में, हम वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 के संशोधनों और उनके विवादास्पद पहलुओं का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं, जो 2 अप्रैल, 2025 को संसद में पेश किए जा रहे हैं। यह नोट पेशेवर लेखों की शैली में लिखा गया है और सभी प्रासंगिक विवरणों को शामिल करता है।

पृष्ठभूमि और संदर्भ

वक्फ बोर्ड भारत में इस्लामिक धार्मिक और परोपकारी संपत्तियों का प्रबंधन करते हैं, जो वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत संचालित होते हैं। 2024 में प्रस्तावित संशोधन विधेयक, जो 2025 के बजट सत्र में चर्चा में है, वक्फ बोर्डों की कार्यप्रणाली, संरचना और जवाबदेही में सुधार लाने का प्रयास करता है। हालांकि, इन संशोधनों ने राजनीतिक और सामुदायिक स्तर पर तीखी बहस छेड़ दी है, विशेष रूप से विपक्ष और मुस्लिम नेताओं द्वारा इसे असंवैधानिक और वक्फ बोर्डों को नष्ट करने वाला करार दिया गया है।

संशोधनों की विस्तृत सूची

1. राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद में कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्यों को अनिवार्य रूप से शामिल करना।

2. वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 9 और 14 में संशोधन कर महिलाओं के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करना।

3. वक्फ संपत्ति के दावों के लिए अनिवार्य सत्यापन प्रक्रिया लागू करना, अवैध कब्जे को रोकने के लिए।

4. जिला मजिस्ट्रेट की भूमिका बढ़ाना, वक्फ संपत्तियों की निगरानी के लिए।

5. वक्फ बोर्डों की असीमित शक्तियों को सीमित करना, बिना जांच के संपत्ति घोषित करने से रोकना।

6. वक्फ संपत्तियों का डिजिटलीकरण बढ़ावा देना, प्रबंधन में सुधार के लिए।

7. वक्फ संपत्तियों के वित्तीय पारदर्शिता के लिए ऑडिट प्रणाली में सुधार।

8. अवैध रूप से कब्जाई गई वक्फ संपत्तियों को पुनः प्राप्त करने के लिए कानूनी प्रणाली में सुधार।

9. राज्य सरकार द्वारा सभी वक्फ बोर्ड सदस्यों की नियुक्ति, नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार के लिए।

10. वक्फ ट्रिब्यूनल की शक्तियों में वृद्धि, विवादों के तेजी से निपटारे के लिए।

11. वक्फ संपत्तियों के अनधिकृत हस्तांतरण पर सख्त सजा के प्रावधान।

12. वक्फ बोर्डों के लिए वरिष्ठ स्तर के अधिकारी को सीईओ नियुक्त करना, प्रशासनिक सुधार के लिए।

13. वक्फ संपत्ति रिकॉर्ड को कंप्यूटरीकृत करना, डेटा प्रबंधन में सुधार के लिए।

14. वक्फ बोर्डों की संरचना में परिवर्तन, विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करना।

इनके अलावा, विधेयक का नाम “यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट, एम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट बिल” रखा गया है, और मुस्लिम ओबीसी समुदाय के एक सदस्य को बोर्ड में शामिल करने का प्रस्ताव है, जो समावेशिता बढ़ाने का प्रयास है।

विवादों का विश्लेषण

ये संशोधन कई स्तरों पर विवादास्पद रहे हैं:

धार्मिक स्वायत्तता पर हमला: गैर-मुस्लिम सदस्यों और महिलाओं को बोर्ड में शामिल करने को विपक्ष ने वक्फ बोर्डों की धार्मिक स्वायत्तता पर हमला माना है। असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं ने इसे वक्फ संपत्तियों को छीनने का प्रयास करार दिया है।

राजनीतिक विभाजन: 13 फरवरी, 2025 को जेपीसी रिपोर्ट पेश करते समय विपक्ष ने वॉकआउट किया, और इसे असंवैधानिक करार दिया। विपक्ष ने दावा किया कि जेपीसी रिपोर्ट से असहमति नोट्स हटाए गए, जबकि सरकार ने इन दावों को खारिज करते हुए विपक्ष पर वोट बैंक की राजनीति का आरोप लगाया।

पारदर्शिता बनाम हस्तक्षेप: सरकार का तर्क है कि ये संशोधन आधुनिकता, पारदर्शिता और जवाबदेही लाएंगे, जैसे डिजिटलीकरण और ऑडिट सुधार। हालांकि, कुछ इसे वक्फ बोर्डों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप मानते हैं।

समयरेखा और वर्तमान स्थिति

विधेयक को 19 फरवरी, 2025 को कैबिनेट ने मंजूरी दी थी, और इसे 2 अप्रैल, 2025 को संसद के बजट सत्र में पेश किया जा रहा है, जो 4 अप्रैल, 2025 तक चलेगा। जेपीसी ने 30 जनवरी, 2025 को अपनी 655 पेज की रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें 15 के मुकाबले 11 वोटों से रिपोर्ट को मंजूरी दी गई, जो राजनीतिक विभाजन को दर्शाता है।

अप्रत्याशित पहलू

एक अप्रत्याशित पहलू यह है कि विधेयक में महिलाओं की विरासत अधिकारों की रक्षा और मुस्लिम ओबीसी समुदाय के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना शामिल है, जो समावेशिता बढ़ाने का प्रयास हो सकता है, लेकिन इसे भी विवादास्पद माना गया है, विशेष रूप से विपक्ष द्वारा।

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राष्ट्र समर्पण एक राष्ट्र हित में समर्पित पत्रकार समूह के द्वारा तैयार किया गया ऑनलाइन न्यूज़ एवं व्यूज पोर्टल है । हमारा प्रयास अपने पाठकों तक हर प्रकार की ख़बरें निष्पक्ष रुप से पहुँचाना है और यह हमारा दायित्व एवं कर्तव्य भी है ।

By Rashtra Samarpan

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