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ले आइये राम के सैनिकों को भी

–राघवेंद्र विक्रम

 

चुनाव आते जा रहे हैं। पाले खिंच रहे हैं। शंकराचार्यगण अलग ही भाषा बोल रहे हैं। धर्म को संरक्षित करने में, विस्तार में और जन जन को जोड़ने में आप अपनी भूमिका का निर्वहन कैसे कर सकेंगे जब आप आज भी ब्राह्मण शूद्र विभेद की बात को पकड़े हुए बैठे हैं। आप कहेंगे कि यह शास्त्रों में है, तो इन शास्त्रों को बदलिए। धर्म को मुक्त कर समाज के निकट लाइये। संतों की वाणी इसी जातीयता की ही तो आलोचना करती है। आप तो महाराज जन को धर्म से दूर करने का उपक्रम कर रहे हैं। ये शूद्र कौन हैं महाराज?

आज हम भगवान राम के आगमन के उत्सव में हैं। राम व चारों भाइयों के वंशज तो बहुत से हैं। लेकिन राम के सैनिक कहां हैं? वे तो लाखों में थे, कहां चले गये? वे मारे गये तो विजयी कौन हुए? कथा में यह भी है कि इंद्र महाराज ने युद्ध के बाद अमृतवर्षा कर सबको जीवित कर दिया था। वनवासियों को राम ने सैनिक बनाया। युद्ध हुआ लंका तक विजय हुई। भारतवर्ष में रामराज्य कायम हुआ। तो जब ग्रंथ लिखे जाने लगे तो वनवासी सैनिकों के स्थान पर वानर भालू जटायू क्यों कह दिया गया…? ये तो वनवासी सेनाओं के प्रतीक चिंह थे झंडों व समूह की पहचान के लिए। तो वानर भालू सिर्फ इसलिए कह दिया गया कि इन वनवासी समाजों को राम के सैनिक होने कारण कहीं उच्च क्षत्रिय न स्वीकार करना पड़े।यदि इन्हें क्षत्रिय मान लिया तो वर्ण व्यवस्था के स्वरूप का क्या होगा? मेरा आकलन है कि वे वीर योद्धा सेनापति वानर भालू कह दिये गये और परिणामस्वरूप वनवासी जहां के तहां रह गये। इतना बड़ा सामाजिक धार्मिक अन्याय कभी देश में तो नहीं हुआ था। आज वनवासियों का, राम के सैनिकों का धर्म क्या है?

11वी शताब्दी से इस्लाम बड़ी तेजी से चढ़ आया। हम सैकड़ों वर्ष मुकाबला किये, बहुत मारे, मरे भी। हमारे योद्धा समाज के क्षत्रियों की संख्या कम होती गई। हारने लगे। इस्लाम की भाषा शक्ति की है, इसमें हमें कोई संदेह नहीं है। इस पर हमारे आपके विचार अलग हो सकते हैं। बहरहाल, उनका लक्ष्य समस्त विश्व को धर्मपरिवर्तित करना है। मान्यता है कि समस्त विश्व के ईमान लाए बगैर कयामत नहीं आयेगी।

हम सब इस्लामिक धर्मगुरुओं की बात सुनते हैं। यह अभियान तब से चल रहा है। सवाल यह है कि हमारे पास प्रतिकार क्या है? मूरख व कायर हिंदू भाईचारा कायम करना चाहते हैं। तो भाईचारा समाधान कैसे है?

जो भारत 712 ई. में था उसका 40% तो अबतक मुसलमान हो चुका है। अभी भी भाईचारे से हमारा पेट नहीं भरा है। तो महाराज, देश ने अपने उस संकटकाल में राम के सैनिकों को क्यों नहीं खोजा। हनुमानजी सुग्रीव अंगद जामवंत की वह सेना क्यों नहीं उठ खड़ी हुई? आपने उठाया क्यों नहीं? आप उन्हें उठाते भी कैसे? उन्हें तो भुलवा दिया गया था। आप तो उन वीर वनवासी रामसैनिकों को शूद्र वह भी संभवतः पंचम वर्ण से भी बाहर घोषित किये हुए थे। तुम थोड़ी थे, वो तो वानर भालू लड़े थे। राम ने तो समाज को उठकर अत्याचार शोषण हत्यारों धर्मशत्रुओं के विरुद्ध धर्मयोद्धा बना कर खड़ा कर दिया। आपने वर्णव्यवस्था ही नहीं मानवजाति से ही उन्हें बाहर कर के उन्हें यह आशीर्वाद दिया है।

आदिशंकराचार्य जी ने उस कठिन काल में धर्म की रक्षा की। आपको चार शंकराचार्य पीठ व 13 अखाड़ों की स्थापना कर धर्म ध्वजारोहण व संचालन की व्यवस्था की। लेकिन 40% भारत के जन आज धर्म से बाहर हो गये। तो कभी धर्मयुद्ध का आह्वान किया गया? कभी शंखनाद कर सम्पूर्ण हिंदू सनातन समाज को आतताइयों के विरुद्ध शस्त्र उठाने के लिए खड़ा किया गया? भारतमाता ने कुछ वीर पैदा किये थे जिनके कारण हम भीषण पराजयों को बरदाश्त करते हुए भी आज हिंदू सनातन धर्मी हैं।

कभी सोचते भी हैं आप असफलताओं, पराजयों और बलात् धर्मान्तरित हो गये अपने लोगों के सम्बंध में?

राम क्या अयोध्या में अकेले आएंगे? कहां हैं राम के सैनिक? यह सवाल आपके सामने है। जाइये सम्मान सहित ले आइये राम के सैनिकों को…!

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