‘झाड़ू पुराण’
— मीना अरोड़ा(व्यंग्यकार)
एक दिन जो इन आंखों ने नजारा देखा, उसे देखने के लिए देवता भी ऊपर से नीचे को झांक रहे थे। पहले देवता जब नीचे झांकते तब पुष्प वर्षा अवश्य करते थे, पर आज देवताओं ने अपने पुष्प यह सोच कर एक ओर रख दिए कि यदि पुष्प नीचे धरती पर गिरे तो पुष्पा को फिर से झाड़ू न लगाना पड़ जाए।
बेचारी पुष्पा झाड़ू लेकर मैदान साफ करने निकली थी। परिजनों के द्वारा तिजोरियां साफ करने के बाद, मैदान साफ करने का जिम्मा पुष्पा ने अपने सिर लिया था।
वैसे भी जब तक कोई जिम्मेदारी न उठाए परिवार कहां चलते हैं।
बेचारा जमाने भर का सताया गरीब परिवार, इससे पहले कि सड़कों और मैदानों में आकर बसेरा करे, मैदानों की सफाई नितांत आवश्यक थी।
पुष्पा ‘आई हेट टीयर्स’ वाला डायलॉग, पुष्पा ने अपने बचपन में रट लिया था। तब से पुष्पा ने न केवल स्वयं रोना छोड़ा अपितु दूसरे के आंसू पोंछने का बीड़ा अपने नाज़ुक कंधों पर तो उठा लिया, लेकिन उसके सामने समस्या यह थी कि उसे रोते बिलखते लोग नहीं मिल रहे थे, जो मिल रहे थे, उसे वो पसंद नहीं आ रहे थे।
पुष्पा का यह मानना था कि जिनके आंसू पोंछे जाएं कम से कम पहले उनके आंसू निकाले भी तो जाएं।
फुटपाथ पर भूखे पेट सोने वालों को समाज सेवियों ने खिला खिला कर कई बार उनके आंसू निकाले पर उन आंसूओं में वो दर्द नहीं था जो पत्थर होते जा रहे लोगों को पिघला कर मोम कर दे।
ऐसा लगने लगा था कई दशकों से लोग इतने बेदिल और दर्द प्रूफ हो गये हैं कि उन पर यदि बुलडोजर भी चला दिया जाये तो भी वे चूं नहीं करते। ऐसे में पुष्पा जैसे वेल विशर मतलब लोगों का भला चाहने वालों को ही आकर उन्हें चेताना पड़ता है कि –भई, तुम्हारे ऊपर बुलडोजर चल रहा है ‘उठो, यूं लाश बन कर मत पड़े रहो, उठो और हमें भी उठाओ। तुम नहीं उठे तो हम उठ जायेंगे।हमारी खातिर अपने चीथड़े हुए बदन को इकट्ठा करो और मौत का विचार कुछ दिनों के लिए स्थगित कर दो।’
पर यह गरीब भी ना .…..जब मरने पर आते हैं हकीकत मे मर जाते हैं।मरने से पहले एक बार भी नहीं सोचते कि उनकी खातिर मैदान साफ किए जा रहे हैं।
बेजान मैदान भी अपनी सफाई करवाने को आतुर दिख रहे थे।उनकी आतुरता की वजह यह थी कि ऐसे हाथों में उसकी सफाई को झाड़ू पकड़वाया गया था जिन हाथों ने कभी फूलों का गुलदस्ता भी नहीं पकड़ा था।
मैदान के बाहर सिक्योरिटी चप्पे चप्पे पर तैनात थी। गरीबों को बता दिया गया था कि उन्हें अपनी औकात में रहना है और सौ फुट दूर रह कर साफ सुथरे मैदान को साफ होते देखना है।
मैदान और झाड़ू दोनों पांच साल बाद फिर काम आयेंगे, तब तक गरीब को फुटपाथों पर रौनक बनाए रखनी है क्योंकि देश की गरीबी का रोना भी तो विकसित देशों के सामने रोना है।
और हां मरना तो गरीबों को हरगिज नहीं है यदि वे नहीं रहे तो, मैदानों में सफाई करके किसे दिखाया जायेगा और देश कैसे साफ किया जाता है यह किसे बताया जायेगा।
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