हिंदू नव वर्ष 2081: हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अर्थात 09 अप्रैल 2024 दिन मंगलवार से नववर्ष संवत 2081 शुरु हो जाएगा। इस संवत्सर का प्रारंभ महापराक्रमी महाप्रतापी राजा विक्रमादित्य ने किया था जिनके राज्य की राजधानी महाकाल की नगरी उज्जैन थी। उनके द्वारा शुरू किए जाने के कारण ही इसे विक्रमी संवत भी कहा जाता है। 08 अप्रैल तक विक्रमी संवत के 2080 साल पूरे हो चुके होंगे।
चैत्र नवरात्र का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना का प्रारंभ भी इसी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से किया था। यही कारण है कि हिंदू समाज में इस दिन का महत्व कुछ और भी अधिक हो जाता है। चैत्र मास का महत्व इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इसी मास में शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम ने अयोध्या की पवित्र धरती पर अयोध्यापति महाराज दशरथ और माता कौशल्या के पुत्र के रूप में जन्म लिया था।
चैत्र नवरात्रि जिसे वासंतिक नवरात्र भी कहा जाता है, की पूर्णता राम नवमी के साथ होती है। नववर्ष के स्वागत की लोगों को अभी से तैयारी शुरु कर देनी चाहिए. उस दिन सबसे पहले प्रातः जागने के बाद दैनिक कर्म से निवृत्त होकर घर में कलश स्थापना के मां दुर्गा की पूजा करें। इसके पहले ही घर के मुख्य द्वार को आम या अशोक के पत्तों और फूलों से सजाएं। घर में ओम अंकित ध्वज को लगाएं और इसके बाद घर के बड़ों के चरण स्पर्श तथा छोटो को स्नेह के साथ नववर्ष की शुभकामना दें।
ज्योतिष काल गणना के अनुसार नववर्ष
ज्योतिष काल गणना के अनुसार प्रत्येक वर्ष का नाम अलग अलग होता है, इस बार 09 अप्रैल से शुरु रहे विक्रमी संवत 2081 का नाम कालयुक्त है। प्रत्येक वर्ष एक राजा और एक महामंत्री के साथ पूरा मंत्रिमंडल होता है. इस बार के राजा “चंद्रमा” और मंत्री “शनि” हैं।
कब शुरू हो रही है चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ: 08 अप्रैल 2024 को रात 11:50 बजे
प्रतिपदा तिथि संपन्नः 09 अप्रैल 2024 को रात 08:30 बजे
क्या है गुड़ी पड़वा का महत्व
भारतीय नव वर्ष यानी नव संवत्सर का उत्सव अलग-अलग नाम से देश के विभिन्न हिस्सों में मनाया जाता है। महाराष्ट्र और दक्षिण पश्चिम भारत में गुड़ी पड़वा उत्सव मनाते हैं। मान्यता है कि इस दिन ही सृष्टि की रचना हुई थी। वहीं गुड़ी पड़वा को कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के लोग उगादी उत्सव मनाते हैं।
मान्यता है कि हिंदू नव संवत्सर यानी गुड़ी पड़वा संसार का पहला दिन है। इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। इसी दिन संसार में सूर्य देव का उदय हुआ था, गुड़ी पड़वा के दिन ही भगवान राम ने बालि वध किया था। सौर कैलेंडर पर आधारित हिंदू नववर्ष को तमिलनाडु में पुथंडु, असम में बिहू, पंजाब में वैसाखी, उड़ीसा में पना संक्रांति और पश्चिम बंगाल में नबा वर्षा के नाम से जाना जाता है। इन दिनों पूजा-पाठ, व्रत किया जाता है और घरों में पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं। साथ ही पारंपरिक नृत्य, गीत, संगीत आदि के कार्यक्रम होते हैं।
कैसे करते हैं सेलिब्रेट
नव संवत्सर के दिन घरों में रंगोलियां बनाई जाती हैं। साथ ही कई तरह के पकवान बनते हैं। बहरहाल नव संवत्सर के दिन की शुरुआत अनुष्ठानिक तेल-स्नान और उसके बाद प्रार्थना से होती है। इस दिन तेल स्नान और नीम के पत्ते खाना शास्त्रों द्वारा सुझाए गए आवश्यक अनुष्ठान हैं। उत्तर भारतीय गुड़ी पड़वा नहीं मनाते हैं बल्कि उसी दिन से नौ दिवसीय चैत्र नवरात्रि पूजा शुरू करते हैं और नवरात्रि के पहले दिन मिश्री के साथ नीम भी खाते हैं।
हिंदू नव वर्ष की तारीख
हिंदू नव वर्ष की तारीख निश्चित न होने का कारण यह है कि यह भारतीय संस्कृति की नक्षत्रों और कालगणना आधारित प्रणाली पर तय होता है। इसका निर्धारण पंचांग गणना प्रणाली यानी तिथियों के आधार पर सूर्य की पहली किरण के उदय के साथ होता है, जो प्रकृति के अनुरूप है। यह पतझड़ की विदाई और नई कोंपलों के आने का समय होता है। इस समय वृक्षों पर फूल नजर आने लगते हैं जैसे प्रकृति किसी बदलाव की खुशी मना रही है।
राष्ट्रीय पंचांग
भारतीय नववर्ष यानी हिंदू नववर्ष, भारतीय राष्ट्रीय पंचांग या भारत के राष्ट्रीय कैलेंडर का पहला दिन होता है, जो शक संवत पर आधारित है। भारत सरकार ने सिविल कामकाज के लिए इसे ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ-साथ 22 मार्च 1957 (भारांग: 1 चैत्र 1879) को अपनाया था। इसमें चंद्रमा की कला (घटने और बढ़ने) के अनुसार महीने के दिनों की संख्या निर्धारित होती है।
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