वैचारिक वायरस फैलाने वाले ये भारतीय, कोरोना वायरस से भी अधिक खतरनाक हैं। कोरोना वायरस आज नहीं, तो कल अवश्य हार जाएगा, लेकिन वैचारिक प्रदूषण फैलाने वाले लोग देश की जड़ में ही मट्ठा डालने का काम कर रहे हैं। इसे समझने की आवश्यकता है।
लेख : अरुण कुमार सिंह
इन दिनों कोरोना वायरस से पूरा विश्व परेशान है। अब तक 60,00000 से भी अधिक लोग कोरोना वायरस से पीड़ित हैं। लगभग 4,00000 लोग अपने प्राण गंवा चुके हैं। विश्व के अनेक देश कोरोना वायरस का टीका तैयार करने में लगे हैं। इसलिए आज नहीं, तो कल कोरोना वायरस का इलाज खोज लिया जाएगा। हालाँकि तब तक विश्व समुदाय को जो आर्थिक क्षति होगी, उसकी भरपाई निकट भविष्य में करना आसान नहीं है, लेकिन इस दुनिया में पुरुषार्थी लोगों की कमी नहीं है। इसलिए आशा की जानी चाहिए कि आगामी कुछ वर्षों में उस आर्थिक क्षति की भी भरपाई हो जाएगी, लेकिन जो लोग वैचारिक वायरस फैला रहे हैं, उसकी दवा शायद किसी के पास नहीं है। ऐसे लोगों को वैचारिक वायरस फैलाने के लिए ऐसी घुट्टी पिलाई जाती है कि इन पर और कोई दवा काम ही नहीं करती है।
वैचारिक वायरस बना साधुओं की हत्या का कारण
वैचारिक वायरस से पीड़ित लोग इन दिनों साधुओं की हत्या कर रहे हैं। 28 मई की रात 12:30 बजे उसी पालघर जिले में साधु शंकरानंद सरस्वती और श्यामसिंह सोमसिंह ठाकुर पर जानलेवा हमला किया गया, जहां 16 अप्रैल को कल्पवृक्षगिरि जी महाराज, सुशीलगिरि जी महाराज और उनके चालक नीलेश तेलगडे की हत्या भीड़ ने पीट-पीट कर दी थी। 23 मई को भी नांदेड़ में साधु शिवाचार्य और एक अन्य व्यक्ति की हत्या गला रेत कर दी गई। अब तक की जानकारी के अनुसार इन हत्याओं में वही लोग शामिल हैं, जिनमें वैचारिक वायरस बरसों तक ठूंसा गया है। चर्च के लोग और जिहादी तत्व अपने स्वार्थ के लिए कुछ लोगों को उकसाते हैं और वे साधुओं की हत्या करने के लिए दौड़ पड़ते हैं।
वैचारिक वायरस से ग्रसित जमात !!
अब उस तब्लीगी जमात की बात, जो वैचारिक वायरस के साथ-साथ पूरे देश में कोरोना वायरस फैलाने में शामिल है। जमात से जुड़े कट्टरवादी तत्वों ने कुछ लोगों में ऐसा जहरीला वायरस घुसा दिया है कि वे अपने इस देश के विरुद्ध ही उठ खड़े हो गए हैं। जो कोरोना योद्धा अपनी जान की परवाह न कर उनकी सेवा कर रहे हैं, उन पर ही हमले कर रहे हैं। पिछले दिनों जिस तरह की हरकतें तब्लीगी जमात से जुड़े लोगों ने की हैं, वे बहुत ही चिन्ता पैदा करने वाली हैं। जमात से जुड़े लोगों की सोच और मानसिकता कितनी घटिया है, इसका एक उदाहरण दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष जफरुल इस्लाम हैं। उन्होंने पिछले दिनों अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा था, ‘‘हिन्दुस्तान में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहे हैं। यदि इसकी शिकायत अरब जगत से कर दी गई तो भारत में जलजला आ जाएगा।’’ ऐसे लोगों के विचारों को देखकर तो यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि भारत को न तो चीन से खतरा है और न ही पाकिस्तान से, खतरा है तो बस ऐसे लोगों से, जो भारत को ‘अपना’ ही नहीं मान रहे हैं। ऐसे लोगों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने जफरुल को अभी तक उनके पद से भी नहीं हटाया है। मामला दिल्ली उच्च न्यायालय तक पहुँच गया है। जफरुल के विरुद्ध देशद्रोह का मामला भी चल रहा है। इस संबंध में एक अच्छी बात यह हुई है कि सीबीआई ने तब्लीगी जमात की जांच शुरू कर दी है। जमात ने विदेश से आए चंदे का कोई ब्योरा सरकार को नहीं दिया है, यह विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम के अंतर्गत गलत है। सीबीआई इसी आधार पर जांच कर रही है।
वैचारिक वायरस की गिरफ्त में ‘आप’ !!
एक और मामला वैचारिक वायरस के विस्तार को बताने के लिए काफी है। इन दिनों आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान को लेकर एक समाचार चर्चा में है। समाचारों के अनुसार अमानतुल्लाह ने दिल्ली में शाहीन बाग के पास यमुना खादर में लगभग पाँच एकड़ सरकारी भूमि पर कब्जा करके रोहिंग्या मुसलमानों को बसा दिया है। यही नहीं, उन्होंने उन लोगों के आधार और राशन कार्ड भी बनवा दिए हैं। यह बहुत ही खतरनाक है। अमानतुल्लाह ने अपने पद का दुरुपयोग उन लोगों के लिए किया है, जो एक षड्यंत्र के अन्तर्गत भारत लाए जा रहे हैं। रोहिंग्या मुसलमानों को भारत से बाहर करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा भी चल रहा है। ऐसे में एक विधायक ही यदि उनकी मदद के लिए आगे आ जाएगा, तो भारत की रक्षा कौन करेगा!
वैचारिक वायरस पहुंचा जमीन जिहाद तक !!
कोरोना काल में दिल्ली में जमीन जिहाद भी शुरू हुआ है। दिल्ली वक्फ बोर्ड ने कुछ दिन पहले दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग को एक पत्र लिखा, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली में कोरोना वायरस से मरने वाले मुसलमानों को इंद्रप्रस्थ मिलेनियम पार्क के पास दफनाया जाए, जबकि वहाँ कोई कब्रिस्तान नहीं है। हालांकि दिल्ली सरकार ने इसकी कोई लिखित अनुमति नहीं दी है। इसके बाद भी पिछले दिनों कुछ लोग जेसीबी मशीन को लेकर पहुँच गए और उस पार्क को तोड़ने लगे। स्थानीय लोगों के विरोध के बाद वे लोग वहाँ से चले गए। इसके बाद दिल्ली विकास प्राधिकरण का एक दल पार्क पहुँचा और लोगों को आश्वस्त किया कि पार्क को कुछ नहीं होगा। लेकिन दिल्ली वक्फ बोर्ड की हरकतों से तो लोगों के मन में कई तरह की बातें उठ रही हैं। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि दिल्ली में कहीं भी वक्फ बोर्ड कब्रिस्तान का बोर्ड लगा देता है और बाद में उस पर दावा करने लगता है कि यह वक्फ बोर्ड की जमीन है। वास्तव में यह जमीन जिहाद ही है और यह जिहाद वैचारिक वायरस के कारण किया जा रहा है।
कहीं ये वैचारिक जिहाद की आवाज तो नहीं ?
एक और वैचारिक जिहाद है लाउडस्पीकर से मस्जिदों में अजान देना। इस संबंध में पिछले दिनों इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक बहुत ही अच्छा निर्णय दिया है। न्यायालय ने कहा है कि नमाज पढ़ना इस्लाम का हिस्सा तो है, पर लाउडस्पीकर इस्लाम का हिस्सा नहीं है। कहने का अर्थ है कि अजान में लाउडस्पीकर का प्रयोग नहीं होना चाहिए। इस निर्णय को कुछ मुसलमान अच्छा मान रहे हैं, तो अधिकांश मुसलमान इसे इस्लाम में हस्तक्षेप बता रहे हैं। जो लोग मस्जिदों में लाउडस्पीकर के प्रयोग की बात कर रहे हैं, वे लोग वैचारिक वायरस से ग्रसित लग रहे हैं।
राष्ट्र हितैषियों पर वैचारिक वायरस का हमला !!
पिछले दिनों वैचारिक वायरस से ग्रसित लोगों ने एक और बहुत ही घटिया काम किया है। इन लोगों ने प्रसिद्ध बॉलीवुड गायक सोनू निगम, जो लॉकडाउन के कारण दुबई में फंसे हुए हैं, के विरुद्ध खाड़ी के देशों में एक अभियान चलाया। इनकी मंशा थी कि सोनू दुबई में हैं तो यदि इसी समय उनके विरुद्ध इस्लाम को अपमानित करने का आरोप लगाकर अभियान चलाया जाए, तो उन्हें वहाँ की जेल में जाना पड़ सकता है, उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इसलिए वैचारिक वायरस फैलाने वालों ने सोशल मीडिया के द्वारा उनके विरुद्ध अभियान चलाया, जिसमें उनके उस बयान को प्रमुखता से उछाला गया, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके घर के पास की मस्जिद में दी जा रही अजान की आवाज से उनकी नींद टूट जाती है। कुछ साल पहले के उनके इस बयान के बाद तो कुछ लोग उनके प्राण लेने के लिए भी उतावले हो गए थे। अब एक बार फिर से ऐसे लोग सोनू के विरुद्ध सक्रिय हो गए हैं।
एक आईएस अधिकारी की ये भी सोच !!
यह वैचारिक वायरस कितना मजबूत है, यह इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसके चक्कर में बड़े-बड़े लोग भी आ रहे हैं। कुछ दिन पहले मुख्य चुनाव आयुक्त रहे एस-वाई- कुरैशी ने ट्वीट किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोरोना हो जाए। एक पूर्व आई-ए-एस- की ऐसी सोच हो सकती है, यह कभी कोई सोच भी नहीं सकता है, पर यह सच है कि वैचारिक वायरस तेजी से फैल रहा है।
वीर सावरकर पर तिलमिलाहट क्यों ?
पिछले दिनों जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पास एक सड़क के नामकरण को लेकर भी वैचारिक वायरस फैलाया गया। उल्लेखनीय है कि उस सड़क का नामकरण प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर के नाम पर किया गया है। वैचारिक वायरस फैलाने वालों ने उस नाम की पट्टिका पर कालिख पोतकर उस पर जिन्ना का चित्र चिपका दिया। इस देश में आक्रमणकारी बाबर, मजहबी उन्माद का प्रतीक औरंगजेब, हिन्दुओं का कत्लेआम करने वाले टीपू सुल्तान जैसों के नाम पर अनेक सड़कें हैं। उन पर कोई कालिख नहीं पोत रहा है, पर वीर सावरकर के नाम पर सड़क का नाम रखने पर वैचारिक जिहादियों के पेट में दर्द होने लगता है। उनका दुस्साहस ऐसा है कि वे भारत का विभाजन करने वाले जिन्ना के नाम पर सड़क का नाम रखने लगते हैं। ऐसे लोग आतंकवादियों का भी महिमामंडन करने से नहीं चूकते हैं।
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