— रितेश कश्यप
बचपन में सुना था की एक झूठ को छुपाने के 100 झूठ बोलना पड़ता है, इसके बावजूद सत्य पराजित नहीं होता। बिहार सरकार में भी ऐसा देखने को मिल रहा है। सरकार लोगों को हर बार गुमराह करने की कोशिश में लगी है मगर बिहार की जनता इतनी भी बेवकूफ नहीं है।
बिहार सरकार में 37440 सीटों के लिए एसटीईटी 2019 के तहत प्रतियोगिता परीक्षा
कराई गई थी। जिसमें 12 मार्च को घोषणा कर यह बताया गया था कि 24599 अभ्यर्थी पास हुए हैं। इसके बाद
21 जून को
बचे हुए 3
सब्जेक्ट के रिजल्ट की घोषणा के साथ कुल 30676 लोगों को मेरिट लिस्ट की सूची
में डाल दिया। इस सूची में पहले से क्वालीफाई हुए 10,000 से अधिक अभ्यर्थी शामिल ना हो
पाने की वजह से पूरे बिहार में आंदोलन करना शुरू कर दिया। आन्दोलन से घबराकर और बिहार सरकार की किरकिरी होने के बाद 30 जून को सरकार ने एक
सूची जारी करते हुए बताया कि STET2019 की परीक्षा में
80402 लोग क्वालीफाई हुए हैं।
21 जून को मेरिट लिस्ट की सूची से बाहर हुए अभ्यर्थियों ने सोशल मीडिया से
सड़क तक बिहार सरकार के मंशा पर सवाल उठाना शुरू कर दिया। उनके द्वारा जो सवाल
पूछे गए जिसका जवाब बिहार सरकार आसानी से दे सकती थी मगर सरकार टालमटोल करती रही।
क्या है अभ्यर्थियों के सवाल
- अभ्यर्थियों का कहना था कि 12 मार्च को 24599 लोग अगर पास हुए
थे तो क्वालीफाई की सूची सरकार ने उसी वक्त जारी क्यों नहीं की थी? - जब बताया गया था कि मात्र 15% अभ्यर्थी ही पास
हो पाए थे तो यह 30 जून को एकाएक 45% अभ्यर्थी कहां से आ गए ?
- सरकार ने किस आधार पर यह
कहा था की लगभग सभी अभ्यर्थियों का नियोजन पक्का होगा? - जब 80402 लोग पास हुए थे तो
37,440 सीटों को क्यों नहीं भरा गया? - 37440 सीट में मात्र 30,676 लोगों को ही मेरिट
लिस्ट में क्यों डाला गया?
इतना ही नहीं, सबसे बड़ा
सवाल तो यह है की 30 जून को जारी लिस्ट के अनुसार 12 मार्च को
69,581 लोग क्वालीफाई हुए थे। ऐसे में मात्र 24599 ही लोगों को क्वालीफाई क्यों
बताया गया था? जबकि उस वक़्त किसी भी तरह की मेरिट लिस्ट की भी बात नहीं की गयी थी, ऐसे में सभी qualify लोगों की सूचि क्यों नहीं जारी की गई थी ?
हजारों अभ्यर्थियों को नम्बर बढाने को लेकर आये कॉल, इस पर भी नहीं हुई जांच
सरकार को बार-बार यह बताया गया कि 12 मार्च से 21 जून के बीच में हजारों अभ्यर्थियों के पास नंबर
बढ़ाने को लेकर कॉल किए गए। उस वक्त अभ्यर्थियों ने उन सभी फोन कॉल को फर्जी समझकर
हल्के में ले लिया। मगर उनमें से एक भी व्यक्ति सामने नहीं आया जिन्होंने पैसे दिए
और उनके पैसे डूब गए।
उक्त फोन कॉल में बच्चों से ₹60000 से लेकर ₹200000 की मांग की जाती थी। जिन्होंने उक्त फोन कॉल का कोई
रिस्पांस नहीं दिया और पैसे नहीं दिए वह लोग सोशल मीडिया में आकर अपनी बात तो कह
रहे हैं। मगर उनका नाम कहीं नहीं आ रहा जिन्होंने पैसे दिए मगर उनका नहीं हो पाया।
ऐसे में यह संभव ही नहीं कि जितने भी
लोगों को फोन किया गया होगा उनमें से एक भी लोगों ने पैसे नहीं दिया होंगे।
यहां फिर सवाल उठता है कि
- इन हजारों अभ्यर्थियों का
डाटा लिक कैसे हुआ ? - क्या एक भी अभ्यर्थी ने
पैसे नहीं दिए? - क्या एक भी अभ्यर्थी के
पैसे नहीं डूबे ? - सरकार इन फोन कॉल के लिए
जांच क्यों नहीं बैठा रही? - क्या 49726 लोग इन्हीं पैसों
की मदद से क्वालीफाई हुए? - पास हुए लोगों की सूची 12 मार्च को ही क्यों
नहीं जारी की गई?
ऑनलाइन परीक्षा के आंकड़े से भी किया गया खेल
ये तो सभी को पता है की पूरी परीक्षा ऑनलाइन ली गई थी। ऑनलाइन परीक्षा का
परिणाम परीक्षा समाप्त होते ही दी जा सकती है। इसके साथ ही यह भी तुरंत ही पता
लगाया जा सकता है
- परीक्षा में कितने लोग शामिल
हुए और कितने लोग अनुपस्थित हुए - कितने लोग पास हुए और कितने
हुए फेल
5 मिनट में निकाले जाने वाले आंकड़े को देने बिहार सरकार को 5 महीने से भी अधिक
का समय लग गया। साथ ही जब दिया भी गया तो उस वक्त भी अभ्यर्थियों से पास होने
वालों का आंकड़ा छुपाया गया।
अभ्यर्थियों को अंधेरे में क्यों रखा गया?
बिहार और घोटाला का संबंध बहुत पुराना रहा है। बिहार में कोई भी प्रतियोगिता
परीक्षा बिना घपले और घोटाले के नहीं हो सकती। नौकरी को लेकर दी जाने वाली
विज्ञप्ति आने के बाद ही पूरे राज्य में दलाल सक्रिय हो जाते हैं। हर नौकरी की
कीमत पहले से ही तय कर ली जाती है। ऐसे में बिहार सरकार यह कैसे दावा कर सकती है
कि इसमें घोटाला नहीं हुआ होगा। इस प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन एक संस्था बेल्ट्रॉन की मदद से कराई गई थी। कई अभ्यर्थियों ने बताया की उन्हें बेल्ट्रॉन की ओर से कई फोन कॉल
आए थे, कुछ के पास तो फ़ोन नंबर और अकाउंट नंबर भी हैं, उन्हें पैसे लेकर क्वालीफाई करने की बात कही गई थी। सरकार इन बातों पर जांच ना बैठा
कर अपने आप को संदेह के घेरे में लाने का काम कर रही है।
खैर जो भी हो बिहार में नीतीश कुमार की सरकार है और नीतीश कुमार की सरकार
बिहार में बहार का नारा लगाते नहीं थकती। अब अगर इसे ही बहार कहेंगे तो बेहाल
सरकार किसे कहेंगे, सवाल उठना लाजमी है।
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