रिपोर्ट: संतोष कुमार सिंह
किशनगंज, 24 दिसंबर 2025: बिहार के किशनगंज जिले में प्रस्तावित आर्मी कैंप के लिए चिन्हित उपजाऊ कृषि भूमि के अधिग्रहण का विरोध लगातार तेज हो रहा है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के बहादुरगंज विधायक तौसीफ आलम ने बुधवार को जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपकर कैंप को किसी अन्य स्थान पर बनाने की मांग की। विधायक ने इस मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मुलाकात की है और वैकल्पिक जमीन की अपील की है।
विधायक तौसीफ आलम ने कहा कि सकोर इलाके में प्रस्तावित कैंप के लिए करीब 200-250 एकड़ पूरी तरह कृषि योग्य जमीन चिन्हित की गई है। यहां कैंप बनने से सैकड़ों किसानों की आजीविका प्रभावित होगी और वे बर्बाद हो जाएंगे। उन्होंने मांग की कि सरकारी खाली जमीन या किसी गैर-कृषि योग्य स्थान पर कैंप स्थापित किया जाए। तौसीफ आलम ने जोर देकर कहा, “चाहे कुछ भी हो जाए, हम यहां आर्मी कैंप नहीं बनने देंगे।” यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है और विवाद को और हवा दे रहा है।
यह विरोध केवल AIMIM तक सीमित नहीं है। कांग्रेस के किशनगंज सांसद मोहम्मद जावेद ने लोकसभा में भी इसकी चर्चा की और कैंप को दूसरी जगह बनाने की अपील की। वहीं, जिला परिषद सदस्यों सहित अन्य जनप्रतिनिधि भी सरकारी भूमि के उपयोग की मांग कर रहे हैं। स्थानीय किसान संगठनों ने भी इस मुद्दे पर रोष जताया है, उनका कहना है कि कृषि भूमि का अधिग्रहण उनके लिए संकट पैदा करेगा और वैकल्पिक व्यवस्था की जरूरत है।
यह प्रस्तावित सैन्य स्टेशन सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) की सुरक्षा और भारत-बांग्लादेश सीमा की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह क्षेत्र रणनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील है, जहां से पूर्वोत्तर राज्यों को जोड़ने वाला एकमात्र संकीर्ण गलियारा गुजरता है। केंद्र सरकार का मानना है कि यहां सैन्य ठिकाना बनाने से सीमा सुरक्षा मजबूत होगी और संभावित बाहरी खतरों से निपटा जा सकेगा। हालांकि, स्थानीय स्तर पर यह मुद्दा राजनीतिक रंग ले चुका है, खासकर किशनगंज जैसे मुस्लिम बहुल जिले में जहां AIMIM का प्रभाव है।
ऐसी स्थिति को देखते हुए फिर से एक बार चर्चा होने लगी है कि “यह संयोग है या प्रयोग”। राजनीतिक टिप्पणीकारों का कहना है कि क्या यह विरोध महज किसानों की चिंता है या एक राजनीतिक प्रयोग, जहां पार्टियां अपनी राजनीति चमकाने के लिए देश की सुरक्षा को दांव पर लगा रही हैं? कुछ लोगों ने AIMIM पर आरोप लगाया कि वे भारत की सेना और राष्ट्रीय सुरक्षा से नफरत करते हैं, जबकि अन्य इसे किसानों के हितों की लड़ाई बताते हैं।
इस विवाद ने राष्ट्रीय स्तर पर बहस छेड़ दी है कि देश की सुरक्षा जरूरी है या पार्टियां अपनी राजनीति में इसे शामिल कर रही हैं।
विपक्षी दल इसे किसानों के हक की लड़ाई बताते हैं, जबकि सत्तापक्ष इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा मानता है। प्रशासन से उम्मीद की जा रही है कि वैकल्पिक व्यवस्था कर किसानों के हितों की रक्षा की जाएगी, साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के प्रयास जारी रहें। इस मुद्दे पर आगे की कार्रवाई पर सबकी नजरें टिकी हैं।
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