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बंगाल से पलायन “उल्टा घुसपैठ” : जब कानून और वोटर लिस्ट ने एक साथ की घेराबंदी

संपादकीय पृष्ठभूमि,19 नवंबर 2025

(संतोष कुमार सिंह, राष्ट्र समर्पण, झारखंड)

पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिलों से पिछले दो महीनों में जो दृश्य सामने आ रहे हैं, वे अभूतपूर्व हैं। उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, नदिया, मुर्शिदाबाद और मालदा के गांवों से सैकड़ों परिवार रातों-रात अपना सामान बांधकर बांग्लादेश की ओर भागते दिख रहे हैं। स्थानीय लोग इसे “उल्टा घुसपैठ” कहने लगे हैं। और इसका कारण सिर्फ चुनाव आयोग का विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision-SIR) अभियान नहीं है, बल्कि उससे कहीं बड़ा और सख्त हथियार है- Immigration and Foreigners Act, 2025, जो 1 सितंबर 2025 से पूरे देश में लागू हो चुका है।

यह नया कानून चार पुराने ब्रिटिशकालीन और स्वतंत्र भारत के कानूनों को समाप्त कर एक आधुनिक, डिजिटल और कठोर व्यवस्था लाया है। इसके तहत बिना वैध पासपोर्ट-वीजा के भारत में प्रवेश करने पर न्यूनतम 5 वर्ष की कैद और 5 लाख रुपये तक का जुर्माना है। फर्जी दस्तावेजों के साथ पकड़े गए तो सजा दोगुनी- 7 वर्ष तक की कैद और 10 लाख तक का अर्थदंड, साथ ही तत्काल निर्वासन। सबसे बड़ी बात- इस कानून के तहत मामला दर्ज होते ही राज्य सरकारों की कोई भूमिका नहीं रह जाती। मामला सीधे केंद्र के अधीन आता है। यानी कोलकाता की लेखी नहीं, दिल्ली की लाठी चलेगी।

यह वह बिंदु है जो घुसपैठियों में सबसे बड़ा खौफ पैदा कर रहा है। SIR अभियान उन्हें सिर्फ वोटर लिस्ट से बाहर करेगा, लेकिन नया कानून उन्हें सीधे जेल और फिर बांग्लादेश भेज देगा- वह भी बिना किसी राजनीतिक संरक्षण के। यही कारण है कि जिन लोगों को दशकों से तृणमूल कांग्रेस का संरक्षण प्राप्त था, वे अब रात के अंधेरे में नावों से भाग रहे हैं।

चुनाव आयोग का SIR अभियान भी कम घातक नहीं है। 4 नवंबर से शुरू हुए दूसरे चरण में बंगाल में अब तक करीब 2.4 करोड़ मतदाताओं के नाम 2002 की मूल मतदाता सूची से मैच नहीं कर पाए हैं। घर-घर जाकर BLO 11 तरह के नागरिकता प्रमाण-पत्र मांग रहे हैं। जिनके पास न 1951-1971 के बीच के दस्तावेज हैं, न जन्म प्रमाण-पत्र, न पुरानी वोटर लिस्ट का रिकॉर्ड- उनके लिए रास्ता एक ही है या तो नाम कटेगा या फिर विदेशी नागरिक न्यायाधिकरण के सामने पेशी। और विदेशी नागरिक न्यायाधिकरण में मामला पहुंचते ही नया कानून सक्रिय हो जाता है।

बीएसएफ की रिपोर्ट्स बताती हैं कि अगस्त-सितंबर 2025 से अब तक बांग्लादेश बॉर्डर पर पकड़े गए घुसपैठियों की संख्या में भारी गिरावट आई है, लेकिन वापस जाने वालों की संख्या में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है। अकेले नदिया सेक्टर में नवंबर के पहले पखवाड़े में 1,800 से अधिक लोग बांग्लादेश की ओर भागते पकड़े गए। ये वे लोग हैं जो दशकों से यहीं बसे थे, वोट डालते थे, राशन कार्ड रखते थे, और जिन्हें स्थानीय प्रशासन की मौन स्वीकृति प्राप्त थी।

राजनीतिक रूप से यह स्थिति राज्य की सत्ताधारी पार्टी के लिए चुनौती बन गई है। एक ओर वह SIR को “बीजेपी की साजिश” बता रही है, दूसरी ओर नए कानून पर चुप है- क्योंकि यह संसद से पारित केंद्र का कानून है, जिसे राज्य सरकार रोक नहीं सकती। यही कारण है कि ममता बनर्जी की रैलियों में अब “घुसपैठिया” शब्द गायब हो गया है।

यह पलायन सिर्फ आंकड़ों की कहानी नहीं है। यह उस लंबी प्रतीक्षा का अंत है जब देश की सीमाएं छलनी थीं और जनसंख्या असंतुलन को वोटबैंक की राजनीति के लिए स्वीकार किया जाता था। अब कानून और तकनीक ने मिलकर वह दरवाजा बंद कर दिया है जो दशकों से खुला था।

जो लोग भाग रहे हैं, वे शायद वापस न आएं। और जो रह गए हैं, उनके पास अब एक ही रास्ता है- कानूनी प्रक्रिया का सामना करना। भारत ने साफ संदेश दे दिया है: यह देश अब धर्मशाला नहीं है। यह एक संप्रभु राष्ट्र है, जहां प्रवेश के नियम होंगे, और उन्हें तोड़ने की कीमत चुकानी पड़ेगी।

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राष्ट्र समर्पण एक राष्ट्र हित में समर्पित पत्रकार समूह के द्वारा तैयार किया गया ऑनलाइन न्यूज़ एवं व्यूज पोर्टल है । हमारा प्रयास अपने पाठकों तक हर प्रकार की ख़बरें निष्पक्ष रुप से पहुँचाना है और यह हमारा दायित्व एवं कर्तव्य भी है ।

By Rashtra Samarpan

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