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संपादकीय पृष्ठभूमि, 04 दिसंबर 2025

(संतोष कुमार सिंह, राष्ट्र समर्पण, झारखंड)

आज के डिजिटल युग में, जहां सोशल मीडिया पर सूचनाओं का प्रवाह नदियों की तरह अनवरत बहता है, वहां सत्य और असत्य के बीच की रेखा अक्सर धुंधली हो जाती है। हाल ही में एक ऐसा नैरेटिव फैलाया जा रहा है जो देश की चुनावी प्रक्रिया की नींव को कमजोर करने का प्रयास करता प्रतीत होता है। कहा जा रहा है कि विशेष गहन संशोधन अभियान के कारण बूथ स्तर के अधिकारी पर इतना अधिक दबाव है कि वे आत्महत्या तक कर रहे हैं। यह प्रोपेगैंडा न केवल तथ्यों से परे है, बल्कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक इस प्रक्रिया को बदनाम करने का एक सुनियोजित प्रयास लगता है। इस संपादकीय में हम इन दावों की सच्चाई की पड़ताल करेंगे, तथ्यों के आधार पर विश्लेषण करेंगे और समझेंगे कि एसआईआर वास्तव में एक ‘दबाव’ नहीं, बल्कि एक ‘कार्य’ है जो देश की आंतरिक सुरक्षा और मतदाता सूची की शुद्धता के लिए अनिवार्य है।

सबसे पहले इस प्रोपेगैंडा की जड़ों को समझें। विरोधी तत्वों द्वारा फैलाए जा रहे इस नैरेटिव का उद्देश्य एसआईआर को विवादास्पद बनाना है, ताकि लोग इसमें भागीदारी से कतराएं। लेकिन सच्चाई यह है कि एसआईआर चुनाव आयोग की एक नियमित और आवश्यक प्रक्रिया है, जो मतदाता सूची को अद्यतन और साफ-सुथरा बनाने के लिए चलाई जाती है। यह अभियान विशेष रूप से उन क्षेत्रों पर केंद्रित है जहां मतदाता सूची में अनियमितताएं या घुसपैठ की आशंका हो सकती है। वर्तमान एसआईआर की समयसीमा 4 नवंबर 2025 से 4 दिसंबर 2025 तक निर्धारित है, यानी पूरे एक महीने का समय। इस दौरान बीएलओ को अपने बूथ के मतदाताओं से संपर्क करना होता है, लेकिन क्या यह कार्यभार इतना भारी है कि आत्महत्या जैसी चरम स्थिति पैदा हो जाए? आइए तथ्यों से इसकी जांच करें।

एक औसत बीएलओ को एसआईआर के दौरान 1000 से 1200 मतदाताओं से मिलने का लक्ष्य दिया जाता है। अब, यदि हम भारतीय परिवारों की औसत संरचना को ध्यान में रखें, जहां एक परिवार में आमतौर पर 3 से 4 मतदाता होते हैं, तो यह लक्ष्य मात्र 250 से 300 परिवारों तक सिमट जाता है। एक महीने यानी 30 दिनों में इस कार्य को विभाजित करें, तो प्रति दिन केवल 8 से 10 परिवारों से संपर्क करने की आवश्यकता पड़ती है। यदि प्रत्येक परिवार के साथ बिताए जाने वाले औसत समय को आधा घंटा (30 मिनट) भी मान लिया जाए- जिसमें नाम, पता, आयु और अन्य विवरणों की जांच शामिल है- तो कुल दैनिक समय मात्र 4 से 5 घंटे का होता है। सरकारी नियमों के अनुसार, किसी भी आधिकारिक ड्यूटी का न्यूनतम समय 8 घंटे होता है, जिसके मुकाबले यह कार्यभार काफी कम है। इससे स्पष्ट है कि एसआईआर बीएलओ के लिए कोई असहनीय बोझ नहीं है, बल्कि यह उनके नियमित कार्य का एक हिस्सा मात्र है।

इसके अलावा, एक महत्वपूर्ण तथ्य जो प्रोपेगैंडा फैलाने वाले अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं, वह यह है कि एक बूथ के मतदाता पूरे शहर या राज्य में बिखरे नहीं होते। वे आमतौर पर एक ही मोहल्ले, गांव या इलाके में निवास करते हैं, जिससे संपर्क प्रक्रिया सुगम और कुशल बन जाती है। बीएलओ को दूर-दराज यात्रा करने की आवश्यकता नहीं पड़ती; वे स्थानीय स्तर पर ही अपना कार्य पूरा कर सकते हैं। यदि कोई अपवादस्वरूप बीएलओ द्वारा आत्महत्या की घटना हुई है, तो उसके पीछे व्यक्तिगत, पारिवारिक या अन्य कारण हो सकते हैं- जैसे मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, आर्थिक दबाव या कार्यस्थल की अन्य चुनौतियां। इसे सीधे एसआईआर से जोड़ना न केवल अतार्किक है, बल्कि उन बीएलओ की मेहनत का अपमान भी है जो समर्पित भाव से इस अभियान में लगे हैं।

यह प्रोपेगैंडा उस युग में फैलाया जा रहा है जहां सूचना की पहुंच हर व्यक्ति की जेब तक है। स्मार्टफोन, इंटरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से लोग अब पहले से कहीं अधिक जागरूक और समझदार हो चुके हैं। वे झूठे नैरेटिव को आसानी से पहचान सकते हैं। चुनाव आयोग द्वारा जारी दिशानिर्देशों और रिपोर्टों से स्पष्ट है कि एसआईआर बीएलओ के लिए कोई अतिरिक्त दबाव नहीं डालता; बल्कि यह एक संरचित, समयबद्ध कार्य है जो उनके पद के दायित्वों का हिस्सा है। यदि बीएलओ पर कोई दबाव है, तो वह शायद प्रशासनिक लापरवाही या स्थानीय स्तर की समस्याओं से हो सकता है, न कि एसआईआर की प्रकृति से।

अब एसआईआर के व्यापक महत्व को समझें। यह अभियान मात्र मतदाता सूची की सफाई नहीं है; यह देश की आंतरिक सुरक्षा की रक्षा का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। एसआईआर के माध्यम से अवैध रूप से देश में रह रहे घुसपैठियों की पहचान की जाती है, जो सीमा सुरक्षा, आतंकवाद निरोध और राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक है। हाल के वर्षों में, कई मामलों में पता चला है कि फर्जी मतदाता सूची के माध्यम से विदेशी तत्व लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का प्रयास करते हैं। एसआईआर इसी तरह की अनियमितताओं को दूर करता है, ताकि चुनाव निष्पक्ष और विश्वसनीय रहें। यह प्रक्रिया लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करती है और सुनिश्चित करती है कि मतदान का अधिकार केवल योग्य नागरिकों तक सीमित रहे।

एक जागरूक भारतीय नागरिक के रूप में, हमें इस प्रोपेगैंडा से ऊपर उठकर एसआईआर में सक्रिय भागीदारी करनी चाहिए। बीएलओ जब आपके दरवाजे पर आएं, तो उनका सहयोग करें; अपनी जानकारी सत्यापित कराएं और यदि कोई अनियमितता दिखे तो रिपोर्ट करें। एसआईआर को सफल बनाना केवल चुनाव आयोग या बीएलओ की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हम सबकी साझा जिम्मेदारी है। आखिरकार, एक मजबूत मतदाता सूची ही एक मजबूत लोकतंत्र की आधारशिला है। दुष्प्रचार के जाल में न फंसें; सत्य के साथ खड़े हों और राष्ट्र निर्माण में योगदान दें।

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राष्ट्र समर्पण एक राष्ट्र हित में समर्पित पत्रकार समूह के द्वारा तैयार किया गया ऑनलाइन न्यूज़ एवं व्यूज पोर्टल है । हमारा प्रयास अपने पाठकों तक हर प्रकार की ख़बरें निष्पक्ष रुप से पहुँचाना है और यह हमारा दायित्व एवं कर्तव्य भी है ।

By Rashtra Samarpan

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