अंग्रेजों के लिए काल बनकर आए थे शहीद रघुनाथ महतो
धन्य है झारखंड की वीर प्रसविनी रत्नगर्भा धरती, जिसने अनेक महान देश भक्तों को जन्म दिया. जिन लोगों ने देश की गुलामी की जंजीर को तोड़ने के लिए, अंग्रेजों के अत्याचार,शोषण तथा जुल्म के खिलाफ हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहूति दी, उनमें अमर शहीद रघुनाथ महतो का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. इनकी सांगठनिक क्षमता एवं युद्ध कला से अंग्रेज भी डरते थे.
उनके साथ डेढ़-दो सौ लोगों का हथियारों से लैस लड़ाकू दस्ता रहता था. फलत: अंग्रेज सेना भी पकड़ने का हिम्मत नहीं करती थी. ऐसे क्रांतिवीर रघुनाथ महतो का जन्म तत्कालीन जंगल महल वर्तमान सरायकेला-खरसावां जिला के नीमडीह प्रखंड के घुटियाडीह में 21 मार्च 1738 को एक किसान परिवार में हुआ था. उसकी माता करमी देवी तथा पिता काशीनाथ महतो थे. रघुनाथ महतो बचपन से ही निर्भीक एवं विद्रोही स्वभाव के थे. एक बार एक तहसीलदार रघुनाथ महतो के पिता से किसी बात को लेकर उलझ गया. रघुनाथ महतो को यह सहन नहीं हुआ. उन्होंने तहसीलदार को मारते-पीटते गांव के बाहर खदेड़ दिया.
उस समय अंग्रेजों का जल, जंगल एवं जमीन हड़पने के साथ-साथ अन्याय, अत्याचार एवं शोषण चरम पर पहुंच रहा था. जिसका पहला संघर्ष 1769 ई. में झारखंड की धरती पर रघुनाथ महतो ने किया. इसके पूर्व ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाने की किसी में हिम्मत नहीं थी.
वे रातों को जाग कर किसानों को संगठित कर अंग्रेजों की गुलामी तथा जुल्म के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रेरित करते थे, लोगों में जोश भरते थे. वह जानते थे कि यदि स्वाभिमान के साथ जीना है तो क्रांति के सिवाय कोई चारा नहीं है. फलत: रघुनाथ महतो ने 1769 में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन नीमडीह के मैदान में अंग्रेजों के दमन नीति के खिलाफ जनसभा बुलायी. अंग्रेजों को ललकारते हुए नारा दिया अपना गांव अपना राज, दूर भगावो अंग्रेज राज. उस विशाल जनसभा में उपस्थित सभी ने अंग्रेजों को किसी भी प्रकार का कर नहीं देने का संकल्प लिया.
इसके बाद जन-जन में विद्रोह की चिनगारी भड़क उड़ी और यह क्रांति की चिनगारी पातकूम, बड़ाभूम, धालभूम, मिदनापुर, गम्हरिया, सिल्ली, सोनाहातु, बुण्डू, तमाड़, रामगढ़ आदि जगहों पर फैल गयी. अंग्रेजों को मालगुजारी मिलना बंद हो गया. जब्त की गयी जमीन पुन: अंग्रेजों से छीनी जाने लगी. गांव-गांव में रघुनाथ महतो के नेतृत्व मे विद्रोही दस्ता तैयार होने लगा. तीर धनुष, टांगी-फरसा, गुलेल इनके प्रमुख अस्त्र थे. इन्हीं अस्त्रों के बल पर बंदूक एवं तोप से लैस अंग्रेजी सेना को रघुनाथ महतो ने कई बार पराजित किया. रघुनाथ महतो जंगल महल में एक सशक्त लड़ाकू नेता के रूप में उभरे. उनको किसानों का भरपूर समर्थन मिला.
झारखंड के आदिवासियों ने रघुनाथ महतो के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ जंगल, जमीन के बचाव तथा नाना प्रकार के शोषण से मुक्ति के लिए 1769 में जो आन्दोलन आरम्भ किया उसे चुआड़ विद्रोह कहते हैं। यह आन्दोलन 1805 तक चला।
पांच अप्रैल 1778 को रांची जिले के सिल्ली प्रखंड के किता-लोट के जंगल से सटे स्थान पर रामगढ़ पुलिस छावनी में हमला करने की रणनीति बना रहे थे कि अंग्रेजी सिपाहियों नेताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर रघुनाथ महतो सहित दर्जनों देश भक्तों को मौत के घाट उतार दिया. ऐसे वीर शहीद को हमारी श्रद्धांजलि.
साभार : प्रभात खबर
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