महान क्रांतिकारी राष्ट्र रत्न पं. श्याम जी कृष्ण वर्मा एक क्रांतिकारी, वकील और पत्रकार थे। वे भारत माता के उन वीर सपूतों में से एक हैं, जिन्होंने सारा जीवन देश की आज़ादी के लिए समर्पित कर दिया। इंग्लैंड से पढ़ाई कर उन्होंने भारत आकर कुछ समय के लिए वकालत की और फिर कुछ राजघरानों में दीवान के तौर पर कार्य किया। पर, ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों से त्रस्त होकर ववे भारत से इंग्लैंड चले गए। वे संस्कृत सहित कई भारतीय भाषाओं के ज्ञाता थे। स्वामी दयानंद सरस्वती श्याम जी के प्रेरणा स्रोत थे। वे स्वामी दयानंद सरस्वती के सान्निध्य में रहकर मुखर हुए। संस्कृत व वेदशास्त्रों के विद्वान के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त वर्मा जी तत्कालीन रतलाम राज्य के 1889 तक दीवान पद पर आसीन रहे। 1892 में उदयपुर राजस्थान व उसके बाद जूनागढ़ गुजरात के भी दीवान रहे, लेकिन राज्यों के आंतरिक मतभेद और अंग्रेजों की कुटिलताओं को समझकर उन्होंने ऐसे महत्वपूर्ण पद भी ठुकरा दिए।
उनके मन में तो मां भारती की व्यथा कुछ और करने को प्रेरित कर रही थी। गुलाम भारत और अनेक बड़े-बड़े राजे-रजवाड़े प्रजा पर राज तो कर रहे थे, लेकिन उन्हें अंग्रेजों की पकड़ के चलते वायसराय के पास जाकर नतमस्तक होना पड़ता था, उस समय भारतीय स्वतंत्रता कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। अतः 1905 में पं. श्री वर्मा ने 20 भारतीयों को साथ लेकर 3 मंजिला भवन इंग्लैंड के स्टेशन पर खरीदकर भारत भवन की स्थापना की। यह भवन भारत मुक्ति के लिए एक क्रांति मंदिर बन गया। वीर सावरकर, मदनलाल धींगरा, लाला हरदयाल, सरदार केशरसिंह राणा, मादाम कामा आदि की सशक्त श्रृंखला तैयार हुई और इन्हीं की प्रेरणा से पं.लोकमान्य तिलक, नेता जी सुभाषचन्द्र बोस स्वतंत्रता समर में संघर्षरत रहे। भारत को स्वतंत्रता चांदी की तश्तरी में भेंट स्वरूप नहीं मिली।
सात समंदर पार से अंग्रेजों की धरती से ही भारत मुक्ति की बात करना सामान्य नहीं थी, उनकी देश भक्ति की तीव्रता थी ही, स्वतंत्रता के प्रति आस्था इतनी दृढ़ थी कि पं. श्याम जी कृष्ण वर्मा ने अपनी मृत्यु से पहले ही यह इच्छा व्यक्त की थी कि उनकी मृत्यु के बाद अस्थियां स्वतंत्र भारत की धरती पर ले जाई जाएं। 31 मार्च 1930 को उनकी मृत्यु जिनेवा में हुई, उनकी मृत्यु के 73 वर्ष बाद व भारत की स्वतंत्रता के 56 वर्ष बाद 2003 में भारत माता के सपूत की अस्थियां गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर देश की धरती पर लाने में सफलता मिली।
पं. श्याम जी कृष्ण वर्मा की जयन्ती पर उन्हें शत-शत नमन ।
Shaymji Krishna Varma was a follower of Swami Dayanand Saraswati. After reading Satyarth Prakash, Shyamji Krishna Varma was impressed and inspired with spirit of Nationalism. It was upon Dayanand’s inspiration, he set up a base in England at India House. Here many revolutionaries like Madam Cama, Veer Savarkar, Lala Hardyal, Madan Lal Dhingra, Bhagat Singh and many more were produced.
Shyam ji was worried of the atrocities inflicted during the plague crisis in Poona on Bharat by the British Government. At this point in life, he appreciated the Nationalist stand taken by Tilak. He was shocked when Tilak was imprisoned for 18 months for writing an article in Kesari about the atrocities of British during the plague. This incident made Shyam ji to take a decision of giving up his lucrative career and to immigrate to England with a view to carry out the freedom fight from abroad. He had only one business in mind – training and inspiring the young sons and daughters of Bharat to strive for the liberty of the Motherland.
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