अपने क्रांतिकारी जीवन में दुर्गा भाभी ने खतरा मोल लेकर कई बड़े काम किये। उनमें सबसे बड़ा काम था लाहौर में लाला लाजपतराय पर लाठी बरसाने वाले सांडर्स पर गोली चलाने के बाद भगतसिंह को कोलकाता पहुंचाना। पुलिस भगतसिंह के पीछे पड़ी हुयी थी। उन्होंने अपने केश कटवाए, कोट-पेंट और हैट पहनकर यूरोपीय बने और दुर्गा भाभी अपने छोटे बच्चे के साथ उनकी पत्नी का रूप धारण करके प्रथम श्रेणी के दर्जे में अंग्रेजों की आँखों में धूल झोंककर लाहौर से निकल गईं। राजगुरु ने मैले-कुचेले कपड़े पहनकर कुली का वेश धारण कर लिया। इस प्रकार पुलिस उस समय भगतसिंह को गिरफ्तार नहीं कर पाई। केन्द्रीय असेंबली में बम फेंकने के बाद जब भगतसिंह गिरफ्तार हो गए तो दुर्गा भाभी आदि ने उन्हें जेल से निकालने की योजना बनाई। इसमें इस्तेमाल करने के लिए जो बम बनाए गए, उनके परीक्षण में 28 मई 1930 को भगवती चरण बोहरा की मृत्यु हो गई।
दुर्गा भाभी पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा। उनकी सम्पति जब्त कर ली गई। फिर भी उन्होंने अपनी मुहीम जारी रखी और मुम्बई के पुलिस कमिश्नर को मारने की योजना बनाई। किन्तु इसमें सफलता नहीं मिली। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया लेकिन प्रमाण न मिलने पर अधिक दिन तक जेल में नहीं रख सके। चंद्रशेखर आजाद की शहादत के बाद जब क्रांतिकारी दल नेतृत्व विहीन हो गया तो दुर्गा भाभी ने पहले गाजियाबाद और बाद में से लखनऊ में शिक्षण केंद्र चलाया।
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