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झारखंड के सोते सिंहों, हुँकार भरो!! : #Jharkhand_Foundation_Day_2021

सौलह श्रृंगार से युक्त 20वीं सदी के आरंभिक दशक में प्रकृति की गोद में बसने वाला झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन का बीजारोपण छोटानागपुर उन्नति समाज, छोटानागपुर- संथाल परगना आदिवासी सभा (आदिवासी महासभा), झारखण्ड पार्टी आदि के नेतृत्व में हुआ। 1963 से 1973 तक का समय झारखंड आंदोलन के बिखराव एवं ठहराव का दौर था। 20वीं सदी के अंतिम चतुर्थांश में झारखंड मुक्ती मोर्चा ने नियमित आंदोलन किया और 15 नवंबर, 2000 ई. को झारखंड का अटल स्वरूप भारत संघ के 28 वें राज्य के रूप में, अस्तित्व में आया। 21 वर्षों में झार(वन) व खण्ड(प्रदेश) अर्थात वनों का प्रदेश झारखण्ड सभी प्राणी जगत के लिये उपवन के समान सौलह संस्कारों युक्त हो कर प्रगती के पथ पर वर्तमान हेमंत सोरेन के कुशल नेतृत्व में बढ़ ही रहा है। किसी भी राज्य के विकास का मापदंड उस राज्य की जनभागीदारी पर निर्भर करती है और शक्ति जनशक्ति में निहित होती है। सत्ता को जब जनता का साथ मिलता है तब स्वयं जनार्दन भी कार्य की सफलता हेतु सहयोग करते हैं। 

वर्तमान परिपेक्ष्य में ही नहीं बल्कि पौराणिक काल से ही सबसे बड़ी दिव्य शक्ति- ईमानदारी, सत्यता ही रही हैं जो अभी भी है। विगत 21 वर्षों में झारखंड राज्य को प्राप्त बहुत कुछ हुआ परंतु राज्य ने बहुत कुछ खोया भी है जो जीवंत राज्य का परिचायक है। देर से ही सही झारखण्ड विजयश्री की ओर साक्षात् हेमंत के हिम्मत के साथ बढ़ चुका है। क्योंकी,

“सत्य सदा विजयी होता है, केवल मात्र निमित्त बनें”

शिक्षा,स्वास्थ्य, संस्कृति, कला , साहित्य, उद्योग ईत्यादी क्षेत्रों में राज्य को एक स्थान प्राप्त था ही लेकिन अब इन सभी क्षेत्रों में अव्वल दर्जे की प्राप्ति हेतु राज्य बढ़ गया है। हाँ, यह जरूर है कि राज्य के विकास की गति धीमी है शायद राज्य का ‘soil growth’ हो रहा है। संस्कृत सुभाषित में कहा गया है, 

“शनैः पन्थाः शनैः कन्था शनैः पर्वत मस्तके।

शनैर्विद्या शनैर्वित्तं पञ्चैतानी शनैः शनैः।।”

अर्थात, आहिस्ता आहिस्ता (धैर्य से) रास्ता काटना, आहिस्ता चद्दर सीना (या वैराग्य लेना), आहिस्ता पर्वत सर करना, आहिस्ता विद्या प्राप्त करना और पैसे भी आहिस्ता आहिस्ता कमाना चाहिये। झारखंड राज्य भी विकास के मार्ग को धीरे-धीरे प्रशस्त कर रहा है। विकास में बाधक मतभेद,  उबड़-खाबड , गड्ढे को समतल करते हुये, सर्वशिक्षा का दीप धीरे-धीरे प्रज्वलित करते हुए, आर्थिक क्षेत्र में भी धीरे-धीरे अपनी साख राष्ट्रीय पटल पर अंकित कर रहा है। 

किसी राज्य की शिक्षा व्यवस्था वहां के विद्यालयों , महाविद्यालयों , विश्वविद्यालयों व अन्य शैक्षणिक संस्थानों के भवनों पर नहीं बल्कि वहां पर पठन-पाठन करने व करवाने अर्थात शिक्षक-छात्र-कर्मचारी-प्रबंधन के नैतिक मूल्यों पर टिकी होती है। चाणक्य ने ठीक ही कहा है, 

“यदि किसी राज्य में एक व्यक्ति में भी राष्ट्र भाव न हो तो समझिये उस राज्य का शिक्षक व शिक्षा तंत्र असफल है।”

राष्ट्रभाव अर्थात ऐसा भाव जिसमें चारित्रिक, आर्थिक, व्यवहारिक पारदर्शिता हो।शैक्षणिक संस्थान का महत्व देवालय से भी अधिक होता है। शिक्षा अर्थात नामांकन,पंजीयन, परीक्षा व परिणाम नहीं बल्कि यह एक व्यक्ति निर्माण की प्रक्रिया है। जबतक शिक्षक छात्र से, छात्र का शिक्षक से शैक्षणिक वार्तालाप ,आपसी अभिदर्शन नहीं होगा तब तक इच्छित परिणाम की प्राप्ति संभव नहीं है। परंतु शिक्षा के क्षेत्र में झारखंड राज्य के विद्यालयों मैं कार्यरत शिक्षक ,प्राचार्य ,कर्मचारी व प्रबंधन का कार्य प्रशंसनीय है। राज्य के शिक्षक यदि शहर में पदस्थापित हैं तो निःसंदेह अपने कर्तव्य का अक्षरशः पालन कर रहे हैं अपितु सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों मैं पदस्थापित शिक्षक भी कर्त्तव्य निर्वहन में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैंं। परिणामस्वरूप झारखंड वासियों में शिक्षा प्राप्ति की ओर रूझान बढ़ा है। आवश्यकता मात्र यह है कि शिक्षा विभाग शिक्षकों के उत्साहवर्धन हेतु औचक निरीक्षण करें यदि कुछ कमियां भी नजर आये तो सुधारात्मक दृष्टिकोण से अवसर प्रदान करें। चूंकि शिक्षक का मर्म बहुत ही संवेदनशील होता हैंं इसलिये उनपर कठोर कार्रवाई न ही किया जाये बल्कि उन्हें अपने कर्तव्य की अनुभूति बारम्बार करवायी जाये। साथ ही शिक्षक भी स्वभाव से शिक्षक बनें रहे क्योंकि, 

“शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी , यदि नैतिक आधार नहीं हो।”

स्वास्थ्य अर्थात सेवा और स्वास्थ्यकर्मी सेवाव्रती होते हैं। उनका जीवन मानव ही नहीं सम्पूर्ण प्राणीजगत की सेवा निःस्वार्थ भाव से करने के लिए है। ध्यान रखना चाहिए आपको ही सेकेंड गाॅड के रूप मैं सभी पूजते हैं । स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी झारखंड नई उँचाईयों को छू रहा है और यहां के स्वास्थ्यकर्मी इस सिद्धांत पर कार्य में रत हैं, 

“सेवा का व्रत धारा , अर्पित जीवन सारा”

ईश्वर के बाद आत्मदर्शन वह आत्मसेवा करने का अवसर यदि किसी को प्राप्त होता है तब ही वह स्वास्थ्य सेवा(नौकरी) में आता है। शिक्षा और स्वास्थ्य दो ऐसी कुंजी है जिसे विकास की रीढ कहा जाता है। यदि राज्यवासी स्वास्थ्य व शिक्षित होगा तब चतुर्दिक विकास होगा। तब हम सब कह सकेंगे, 

“हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे।”

झारखंड की संस्कृति प्राकृतिक है। यहां की जीवनशैली प्रकृति की सुरीली व सुरम्य वादियों में कलरव करती है। प्राकृतिक छटां अर्थात जल, जंगल, जमीन इस राज्य का प्राण है। नागपुरी गीत की पंक्तियों में झारखंड की सटीक परिभाषा है,

“ऊँचा-नीचा ,पहाड़-पर्वत ,नदी-नाला

हाय रे हमर छोटानागपुर,

हीरा नागपुर…।” 

खनिज सम्पदाओं से परिपूर्ण यह राज्य दुर्बल नहीं बल्कि सबल राज्य है। राज्य का लगभग हर जिला खनिज सम्पन्न जिला है। 2000 ई.  से लेकर 2021 ई. तक के सरकारी निर्णय से ‘हीरा नागपुर’ ने बहुत कुछ पाया भी तो बहुत खोया भी है जिसकी पूर्ति के लिए वर्तमान सरकार कार्यरत है। भारत सरकार द्वारा एक भारत, श्रेष्ठ भारत व स्वच्छ भारत की सोच वाली झारखंड सरकार शुद्ध मन से ‘हीरा नागपुर’ को एक अलग पहचान दिलाने में लगी है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की वर्तमान झारखंड सरकार इस संकल्प के साथ कार्य कर रही है कि , 

“अनथक श्रम दिन-रात करेंगे,

सहज सरल निर्लिप्त रहेंगे।”

कहा जाता है ‘सांच को आंच क्या’ ठीक उसी प्रकार वर्तमान झारखंड सरकार ने कई ऐसे भी निर्णय लिये जो राज्य के विकास में अवरोधक थी जिसके लिये  सम्पूर्ण राज्य वासियों ने  सरकारी की भूरी भूरी प्रशंसा की। यदि इसी प्रकार से हर क्षेत्र में धीरे-धीरे ही सही राज्य सरकार अपनी कटिबद्धता प्रदर्शित करती रही तो यह वन प्रदेश झारखंड , हीरा नागपुर वास्तव में एक सुरम्य राज्य हो जायेगा।राज्य के सभी सांसदों ने केंद्र सरकार की योजना ‘आदर्श ग्राम’ को एक आदर्श के रूप में स्वीकार किया जिसका परिणाम यह हुआ कि झारखंड राज्य का कसमार प्रखंड देश में प्रथम Wi Fi गांव घोषित हुआ। यह सब इस राज्य के जनप्रतिनिधियों के स्वच्छ सोच व दिशा के कारण ही संभव हो सका है। अभी भी आदर्श ग्राम योजना के तहत राज्य के सांसद गांवों को अतुल्य स्वरूप देने में लगे हैं, साथ ही उन्हें विश्वास हो गया है कि श्रम ही जीवन है। प्रजा की सुरक्षा ही राजा का मौलिक धर्म है। महाभारत में कहा गया है, 

“राजकलिं हन्युः प्रजाः”

अर्थात प्रजा की सुरक्षा के प्रति बेपरवाह राजा मृत्युदंड के योग्य है। 

झारखंड राज्य का संयोग बहुत ही शानदार है। 15 नवंबर, 2000 ई. को अटल की कल्पना भारत के पटल पर उभरी साथ ही इन 21 वर्षों बाद केंद्र की सरकार व राज्य की सरकार दोनों का मात्र एक सोच सबका साथ सबका विकास होना सुफल संयोग ही है। आदर्श ग्राम, बेटी पढाओ- बेटी बढाओ, देवालय से बढ़कर शौचालय, नमामी गंगे, सर्वशिक्षा, गरीबी से लड़ने की चाहे जो भी योजना हो। इन सभी योजनाओं पर झारखंड सरकार को संकीर्णता से ऊपर उठकर बढ़ने की आवश्यकता है। क्योंकि, 

“जन्मना जायते शुद्र, संस्कारैद्विंज उच्यते।”

द्विज का शाब्दिक अर्थ है जिसका दूसरा जन्म हुआ हो। झारखंड राज्य का भी दूसरा जन्म हुआ है। जन्म से तो सभी शुद्र पैदा होते हैं, संस्कारित होने से ही वह द्विज होता है। झारखंड सरकार यदि सभी कुण्ठाओं को त्यागते हुये ‘सबका साथ’ लेकर तथा अपनी कार्य संस्कृति में विश्वास रखकर बढे तो ‘सबका विकास’ संभव है। जरूरत है , 

“जातियों के काफिले तुझसे पीछे जो चले”

राज्य के सत्ताधारी, सरकारी व गैर सरकारी अधिकारी व कर्मचारी, सम्पूर्ण शिक्षा व स्वास्थ्य जगत, युवा, व्यवसायी, वृद्ध, विद्यार्थी अर्थात् पूरा झारखंड ‘संघच्छद्वम्’ एक साथ चलने का संकल्प लेकर एक एक कदम बढाये तो हर कदम राज्य के गागर में सागर भरने के समान होगा। ईमानदारी विश्वास कायम करती है। यह दिखाने व झलकाने के लिए नहीं अपितु यह विश्वास बढाने के लिये है। जिस प्रकार विश्वास में संदेह का स्थान नहीं होता ठीक उसी प्रकार ईमानदारी से बढकर कोई शक्ति नहीं होती। 

झारखंड राज्य निर्माण से ही कंटकाकीर्ण मार्ग को सुगम बनाने में प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन, रघुबर दास, हेमंत सोरेन, सुदेश महतो सहित कई राजनेताओं का सराहनीय योगदान रहा जो वर्तमान सरकार के लिये वरदान है। यदि इस अनुकूल परिस्थिति में भी विकास की गाड़ी सरपट नहीं दौड़े और जन जनार्दन को सुख शांति न मिले तो विचार करना होगा। रामचरितमानस में तुलसीदास ने कहा ही है, 

“जा सुराज प्रिय प्रजा दुखारी।

सो नृप अवश्य नरक अधिकारी।।”

तो आइये हम सब मिलकर एक साथ उच्चार करें और ऐसा व्यवहार करें की झारखंड राज्य अपनी एक अलग पहचान बनाये। राज्य के स्थापना दिवस के अवसर पर जन जन का संकल्प राज्य हित ही हो। नयी व नौजवान पीढ़ी खासकर विद्यार्थी (सभी स्तर के) सत्य, ञान, शील, व बुद्धि विवेक के मार्ग से आगे बढ़े न की हल्ला बोल, धरना, मार पीट, आंदोलन, विद्रोह से। 

नौजवानों ! अब जाग उठो कमर कसो, मंजिल की राहें बुलाती है। हृदय से राज्य स्थापना दिवस की बधाई व अह्वान, 

“है क्रांति सहज स्वीकार करो, अपने तेवर पे धार धरो।

झारखंड के सोते सिंहों, हुँकार भरो!! हुँकार भरो!! ।”

जय झारखंड!

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डॉ. ओम प्रकाश 

सहायक प्राध्यापक, बी.एड.विभाग,

राँची वीमेंस काॅलेज,राँची

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