गोला।गोला के कई दुर्गा मंदिरों में कलश स्थापना के साथ नवरात्र प्रारंभ हो गया। चैत्रमास प्रतिपदा शुक्ल पक्ष के आरंभ के साथ वासंतिक नवरात्र के प्रथम दिन देवी प्रथम शैलपुत्री की पूजा की गई।वंदे वांछितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।वृषारूढ़ां शैलपुत्री यशस्विनीम।।माता का मूल मंत्र है।इस मंत्र के जाप से सभी मनोवांछित कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।मान्यता है कि देवी शैलपुत्री का स्वरूप शांत सौम्य है।पंडित कृष्ण जीवन पांडेय के अनुसार इस स्वरूप में माता का ध्यान आराधना करने से यश कृति धन विद्या व मोक्ष दायनी है।बताया कि माता का यह रुप जगदम्बा पर्वत राज हिमालय के घर पुत्री रुप में अवतरित हुई।कालांतर में जगदम्बा इसी स्वरूप में पार्वती के नाम से भगवान शंकर की अर्धांगिनी हुई।नियमानुसार नवरात्र में प्रत्येक कुमारी पूजन का भी विधान है जिसमें प्रथम रोज दो वर्षीय कन्या पूजन किया जाता है।
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