सुभाष चौक रामगढ़ |
— रितेश कश्यप
ए भाई जरा देख के चलो
उन्हें ना तो ट्रैफिक की चिंता है ना ही ट्रैफिक पुलिस की । अगर उनका मन किया तो रोड के बीच में चलेंगे और अगर मन किया तो रोड के किनारे। मगर जो भी होगा वह उनके मन से ही होगा।
जिला परिवहन पदाधिकारी सहित हर पदाधिकारी भी उनके आगे बेबस है। कोई उनका कुछ बिगाड़ भी नहीं सकता है जबकि उनके पास कोई पैरवी भी नहीं है । वह अपने आप में इतने शक्तिशाली हैं की अगर वह रास्ते पर चल रहे हैं तो किसी भी गाड़ियों की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह उन्हें टोक सके या रोक सके।
और तो और किसी ने अगर हिम्मत दिखा भी दी तो उनकी क्या मजाल कि वह टस से मस भी हो जाए। वह इतने मत वाले होते हैं की शराबी भी शर्मा जाए। कोई नहीं है उनकी सुध लेने वाला और जो सुध ले सकता है उसकी भी वह नहीं सुनते क्योंकि मैंने पहले ही कहा वह है तो बड़े मतवाले।
ट्रैफिक पुलिस की क्या बिसात जो उन्हें रोक दें
उनकी निडरता का मिसाल यह है कि अगर ट्रैफिक पुलिस भी सामने आ जाए तो उनकी वह परवाह नहीं करते और ट्रैफिक पुलिस की हिम्मत भी नहीं कि वह उन पर चालान काट दे । हां यह बात अलग है कि अगर उन्हें रोकने टोकने वाले किसी गाड़ी वाले ने कुछ गलती कर दी तो जरूर चालान कट सकता है। एक बात और बता दूं कि अगर उन्हें गुस्सा आ गया तो चाहे वह वहां चलने वाले कोई आम आदमी हो कोई पदाधिकारी हो या फिर ट्रैफिक पुलिस उन्हें भी भागना पड़ सकता है।
सरकार की भी नहीं सुनता वह
एक और बात पता चला कि उनसे आज तक किसी सरकार की हिम्मत नही हुई की रोड टैक्स वसूल सकें। चलो अगर किसी सरकार ने हिम्मत दिखाने की कोशिश भी की होती तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं उनसे कोई रोड टैक्स वसूल भी नहीं सकता। वह अकेले नहीं है उनके सहयोगी और उनका कुनबा बहुत बड़ा है। सरकार ने कई कानून बनाए मगर कोई कानून इन पर लागू नहीं होता।
आखिर कौन है वह
अब आपको यह लग रहा होगा ऐसा कौन सा नेता, अभिनेता या फिर डॉन है जो इतना ताकतवर या इतना रसूख वाला है कि उसे किसी का डर नहीं है। चलो आपकी जिज्ञासा को शांत करते हुए मैं बता ही देता हूं कि उस महान व्यक्तित्व का मालिक रामगढ़ में ही नहीं बल्कि संपूर्ण झारखंड मान लिया जाए और तो और झारखंड ही नहीं पूरा देश मान लिया जाए हर जगह उनका आधिपत्य है।
रहस्योद्घाटन
वही तो है जिनका रंग कोयले जैसा काला, आँखें काफी बड़ी बड़ी, मतवाली चाल में झूमता हुआ श्री भैंस महाराज।
भैंसों के नक्शे कदम पर चलते हुए कभी बकरियों का झुंड , अगर आप किसी कॉलोनी से गुजर रहे हैं तो मुर्गियों का झुंड और किसी किसी स्थान पर तो सूअरों का झुंड। अब जरा सोच कर आप बताओ की कोई है जो इन से पंगा ले सकता हो। आपकी नजर में कोई ट्रैफिक पुलिस या जिला परिवहन पदाधिकारी या सड़क मंत्रालय या फिर कोई ऐसे महापुरुष जिनको इन्हें कुछ कहने का भी हिम्मत हो।
अगर आप गाड़ी मालिक हैं तो झेलना आप ही को होगा
अगर कोई गाड़ी वाला इन से टकरा जाए तो गाड़ी वाले को हर तरीके की भरपाई देनी होगी। वह चाहे गाड़ी का नुकसान हो, ट्रैफिक पुलिस का चालान हो या फिर उस पशु का मालिक के द्वारा मांगा गया हर्जाना हो, नुकसान तो उस गाड़ी वाले का ही होगा। जबकि उस गाड़ी वाले ने ट्रैफिक के नियम पालन किया भी था बावजूद उसके नुकसान की भरपाई उसे ही करना होगा और कारण वह बनेगा जिसके लिए ट्रैफिक का कोई नियम ही ना हो।
किसी मसीहा के इंतजार में बैठा प्रशासन
सरकार और प्रशासन दोनों हाथ खड़े करके आत्मसमर्पण की मुद्रा में बैठकर इंतजार कर रही है कि कब कौन मसीहा आएगा और इनके खिलाफ अपना मोर्चा खोलेगा। अब आप ही सोचो इनके खिलाफ मोर्चा खोलने की हिम्मत भी किसी में नहीं होगी क्योंकि राजनीतिक दलों को तो वोट मिलने से रहा , आम आदमियों को अपने काम से फुर्सत नहीं है, पदाधिकारियों को आम जनता के दुख देने और दुख हरने के अलावा कोई काम नहीं है। नेताओं को नीति और पैसा बनाने से फुर्सत नहीं है।
है कोई जो इस समस्या का समाधान कर सके या फिर भगवान का इंतजार करना पड़ेगा अवतार लेने के लिए।
राष्ट्र समर्पण एक राष्ट्र हित में समर्पित पत्रकार समूह के द्वारा तैयार किया गया ऑनलाइन न्यूज़ एवं व्यूज पोर्टल है । हमारा प्रयास अपने पाठकों तक हर प्रकार की ख़बरें निष्पक्ष रुप से पहुँचाना है और यह हमारा दायित्व एवं कर्तव्य भी है ।
It shows officials apathy towards common man's issues. I hope situation will improve after they read your article. Great job sir