कई दशक पहले की गई वैज्ञानिक खोज हो, जिसे वर्षों पहले नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया हो और जो गुजरते वक्त के साथ और भी प्रासंगिक होती जा रही हो, तो उससे जुड़े वैज्ञानिकों को बार-बार याद और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
दक्षिण भारत के त्रिचुनापल्ली में पिता चंद्रशेखर अय्यर व माता पार्वती अम्मा के घर में 07 नवंबर 1888 को जन्मे भौतिक शास्त्री चंद्रशेखर वेंकट रमन माता पिता की दूसरी संतान थे। उनके पिता चंद्रशेखर अय्यर महाविद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्रवक्ता थे। ब्रिटिश शासन के दौर में भारत में किसी प्रतिभाशाली व्यक्ति के लिए भी वैज्ञानिक बनना आसान नहीं था। एक शिक्षार्थी के रूप में भी रमन ने कई महत्वपूर्ण कार्य किए थे। वर्ष 1906 में रमन का प्रकाश विवर्तन (डिफ्रेक्शन) पर पहला शोध पत्र लंदन की फिलोसोफिकल पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
कॉलेज के बाद रमन ने भारत सरकार के वित्त विभाग की एक प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। इसमें वे प्रथम आए और फिर उन्हें जून 1907 में असिस्टेंट एकाउटेंट जनरल बनाकर कलकत्ता भेज दिया गया। एक दिन वे अपने कार्यालय से लौट रहे थे कि उन्होंने एक साइन-बोर्ड देखा – इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टीवेशन ऑफ साइंस। इसे देख उनके अंदर की वैज्ञानिक इच्छा जाग गई। रमन के अंशकालिक अनुसंधान का क्षेत्र ‘ध्वनि के कंपन और कार्यों का सिद्धांत’ था। रमन का वाद्य-यंत्रों की भौतिकी का ज्ञान इतना गहरा था कि 1927 में जर्मनी में छपे बीस खंडों वाले भौतिकी विश्वकोश के आठवें खंड का लेख रमन से ही तैयार कराया गया था। इस कोश को तैयार करने वालों में रमन ही ऐसे थे, जो जर्मनी के नहीं थे। प्रकाश के क्षेत्र में अपने उत्कृष्ट कार्य के लिए सर सीवी रमन को वर्ष 1930 में नोबेल पुरस्कार दिया गया था। उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले एशियाई होने का गौरव भी प्राप्त है। उनका आविष्कार उनके नाम पर ही रमन प्रभाव के नाम से जाना जाता है। रमन प्रभाव का उपयोग आज भी वैज्ञानिक क्षेत्रों में किया जा रहा है। जब भारत से अंतरिक्ष मिशन चंद्रयान ने चांद पर पानी होने की घोषणा की तो इसके पीछे भी रमन स्पैक्ट्रोस्कोपी का ही कमाल था।
चंद्रशेखर वेंकटरमन या सर सीवी रमन एक ऐसे ही प्रख्यात भारतीय भौतिक-विज्ञानी थे। फोरेंसिक में भी रमन प्रभाव काफी उपयोग साबित हो रहा है। अब यह पता लगाना आसान हो गया है कि कौन-सी घटना कब और कैसे हुई थी। सीवी रमन ने जिस दौर में अपनी खोज की थी, उस समय काफी बड़े और पुराने किस्म के यंत्र हुआ करते थे। रमन ने रमन प्रभाव की खोज इन्हीं यंत्रों की मदद से की थी। विज्ञान की सेवा करते करते 21 नवंबर 1970 को बेंगलुरू में उनका निधन हो गया। वो भले ही आज हमारे बीच नहीं, लेकिन उनका प्रभाव सदैव मौजूदा तकनीक में नजर आएगा। रमन प्रभाव ने ही तकनीक को पूरी तरह बदल दिया है। अब हर क्षेत्र के वैज्ञानिक रमन प्रभाव के सहारे कई तरह के प्रयोग कर रहे हैं।
साभार : RSS.ORG
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